आधुनिक भाषाविज्ञान के स्वरूप
धनजी प्रसाद
एम.ए. हिंदी (भाषा-प्रौद्योगिकी)
पिछले अंक में आधुनिक भाषाविज्ञान के स्वरूप की चर्चा करते हुए हमने देखा कि पाणिनी आदि के समय में संस्कृत का व्याकरणिक अध्ययन हुआ। पहले यूरोपिय देशों में भाषाओं का ऐतिहासिक अध्ययन होता था। सस्यूर के आने के पश्चात वर्णनात्मक भाषाविज्ञान का उदय हुआ। सर विलियम जोन्स के द्वारा तुलनात्मक भाषाविज्ञान के बीज बोए गए। इस प्रकार आधुनिक भाषाविज्ञान की वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक, तीनों शाखाओं की बात करते हुए हमने इसके व्यवहारिक अनुप्रयोगों की बात की।
वर्तमान में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के रूप में भाषाविज्ञान की एक नई शाखा का उदय हुआ है। इसमें के वैज्ञानिक अध्ययन से प्राप्त ज्ञान के व्यवहारिक अनुप्रयोगों की बात की जाती है। अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की चर्चा मुख्य रूप से तीन संदर्भों में की जा सकती है, जिन्हें हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं_
1. भाषाशिक्षण का संदर्भ
2. ज्ञान का संदर्भ
3. विद्या का संदर्भ
भाषाशिक्षण का संदर्भ_वैश्वीकरण के वर्तमान परिवेश में बहुभाषिकता (या कम से कम द्विभाषिकता) एक मूल आवश्यकता बन गई है। अत: विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम अन्य भाषाओं को सीखते हैं। इस उद्देश्य की कम समय में तथा अधिकाधिक पूर्ति के लिए एक व्यवस्थित भाषा शिक्षण की आवश्यक्ता होती है। अपनी प्रथम भाषा में भी दक्षता हासिल करने के लिए भाषा शिक्षण का सहयोग लिया जा सकता है।
भाषा अधिगम के चार कौशल हैं- सुनना, बोलना, पढना और लिखना। इन चारों कौशलों में शिक्षार्थी को अधिक से अधिक निपुण बनाना ही भाषा शिक्षण का उद्देश्य है।
किसी भी भाषा के शिक्षण के लिए आधार भाषा (l1) और लक्ष्य भाषा (l2) का विवरण उपलब्ध कराना, पाठ्य सामग्री निर्माण, शिक्षण और परिक्षण तथा त्रुटि विश्लेषण में भाषाविज्ञान का योगदान अपेक्षित है।
ज्ञान का संदर्भ- इसके अंतर्गत हम अन्य शास्त्रों में भाषाविज्ञान के ज्ञान का उपयोग करते हैं। जैसे- भाषा का समाजशास्त्र (sociology of language)| इसमें भाषा के संदर्भ में समाज का अध्ययन किया जाता है। यहाँ ध्यान देना चाहिए कि ’समाजभाषाविज्ञान’ (sociolinguistics) में समाज के संदर्भ में भाषा का अध्ययन किया जाता है। भाषा के समाजशास्त्र भाषा के आधार पर समाज की संरचना का अध्ययन किया जाता है। जैसे- एकभाषी समाज, बहुभाषी समाज आदि। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न भाषा समुदायों का अध्ययन किया जाता है और साथ ही इन भाषाओं की उस समाज में भूमिका का भी अध्ययन किया जाता है।
विद्या का संदर्भ- इसमें भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ज्ञान का उपयोग भाषा से जुडे हुए विविध क्षेत्रों में किया जाता है। इसके प्रमुख उपक्षेत्रों को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं -
विद्या का संदर्भ
अनुवाद विज्ञान (translation)
कोशविज्ञान (lexicography)
शैली विज्ञान(stylistics)
भाषा नियोजन (language arrengement)
वाक्दोष चिकित्सा (speech therepy)
अनुवाद विज्ञान में श्रोत भाषा की सामग्री का लक्ष्य भाषा में अनुवाद किया जाता है। अत: एक सफल अनुवादक को दोनो भाषाओं की संरचना (रूपिम, शब्द/पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य, पाठ) का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए भाषाविज्ञान उपयोगी होता है।
कोशविज्ञान (lexicography) शब्दकोश निर्माण का शास्त्र है। शब्दविज्ञान (lexicology) शब्दों का अध्ययन है। कोशविज्ञान के कई संदर्भों जैसे- कोश में कितने शब्द हों, शब्द चयन का आधार, कोश के प्रकार तथा प्रयोजन का निर्धारण, एक प्रविष्टि से संबंधित सभी सूचनाएँ आदि के लिए भाषाविज्ञान अत्यन्त ही उपयोगी है।
शैली विज्ञान(stylistics)- इसमें किसी पाठ का भाषावैज्ञानिक विष्लेषण किया जाता है।
भाषा नियोजन (language arrengement)_ इसमें भाषा, बोली तथा भाषाई अस्मिता का विवेचन तथा वर्णन किया जाता है।
वाक्दोष चिकित्सा (speech therepy) में व्यक्तियों में होने वाले भाषा संबंधी विकारों का अध्ययन किया जाता है।
वर्तमान में तीव्र गति से हो रहे तकनीकी विकास ने भाषा अध्ययन को भी प्रभावित किया है। इसी कारण भाषा और प्रौद्योगिकी अथवा तकनीकी के अंतरानुशासित (interdisciplinary) कोर्सों जैसे- भाषा प्रौद्योगिकी, संगणक के साथ संगणकीय भाषाविज्ञान (computational linguistics) और यांत्रिकी के क्षेत्र में भाषा अभियांत्रिकी (language engineering) आदि क्षेत्रों का विकास हुआ है।
इस प्रकार आधुनिक भाषाविज्ञान अपने अनुप्रयुक्त पक्ष के साथ एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली ज्ञान की शाखा के रूप में उभरकर सामने आया है।