30 मार्च 2010

महर्षि पतंजलि

अनामिका कुमारी
एम।ए.हि.(भाषा-प्रौद्योगिकी)
महर्षि पतंजलि के जन्म और उनके कार्य-व्यापार को लेकर विद्वानों में अनेक मतभेद प्रचलित हैँ। एक औरत के अंजलि में गिरने (पत्) से उनका नाम पतंजलि हुआ था। किंवदंतियों के अनुसार उनके पिता अंगीरा हिमालय के और माता गोणिका कश्मीर के निवासी थे। महर्षि पतंजलि का जन्म 250 ईसा पूर्व माना जाता है परंतु इनके जन्म को लेकर अनेक विवाद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म चौथी शताब्दी ईसा पूर्व और अन्य के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व, प्रसिध्द कृति योग-सूत्र की प्रस्तुति चौथे से दूसरे शतक ईसा पूर्व, के बीच मानी जाती है। इस आधार पर योग्य तिथि 250 ईसा पूर्व ही माना गया।
पतंजलि के जन्म और उनके माता-पिता के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक किंवदंति के अनुसार पतंजलि के पिता अंगीरा इस सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा के दस पुत्रों में से एक थे और शिव की पत्नी उनकी माता थीं। इसप्रकार पतंजलि ब्रह्मा के पौत्र; पर साथ में वह बुद्धि, वाग्मिता तथा त्याग में सर्वश्रेष्ठ देवता बृह्स्पति के भाई भी थे।
एक अन्य किंवदंति के अनुसार पतंजलि,स्वंय भगवान विष्णु के अवतार थे ; जो आदिशेष नामक सर्प के रूप में है तथा भगवान विष्णु के आसन के रूप में प्रसिध्द है (वास्तव में आदिशेष सर्प भगवान विष्णु के अनेक अवतारों में एक है।) एक दिन जब विष्णु, भगवान शिव के नृत्य से आनंद विभोर हो रहे थे उसी समय उनके शरीर में एक प्रकार का कंपन हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप आदिशेष के ऊपर भार बढ़ने लगा; परिणामत: उसे कुछ असुविधाओं का अनुभव हुआ। नृत्य समाप्ति के उपरांत भार कम होने पर उसने इसका कारण पूछने उसे उक्त घटना की जानकारी हुई। ज्ञात जानकारी के बाद आदिशेष ने भी अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से नृत्य सीखने की इच्छा व्यक्त की, यह सुनकर य भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर आदिशेष को वरदान दिया कि भगवान शिव के आशिर्वाद से वह एक दिन मानव-अवतार के रूप में जन्म लेकर उत्तम नर्तक के रूप में प्रसिध्द होगा। इस अवतार की प्राप्ति हेतु वह अपनी भावी माता के विषय में मनन करने लगा कि उसकी योग्य माता कौन होगी? उसी समय गोणिका नामक एक सदाचारी और सदगुणी स्त्री जो पूर्णत: योग के प्रति समर्पित थी और इसके द्वारा प्राप्त उच्च तथा योग्य गुणों के हेतु एक योग्य उत्तराधिकारी के रूप में एक पुत्र की कामना कर रही थी ताकि आने वाले समय में भी इस ज्ञान का प्रसार हो सके।परंतु इस पृथ्वी पर वह इतना योग्य पात्र पाने में वह असक्षम थी। इस हेतु उसने प्रकाश के देवता सूर्य के समक्ष साष्टांग दंडवत करते हुए अपनी ओर से अपनी अंजुली से सूर्य को जल अपर्ण करते हुए उनसे अपने योग्य पुत्र की अनुनय-विनय करने लगी और ध्यान में मग्न हो गई। यह एक साधारण पर निष्ठापूर्वक किया हुआ अपर्ण था। भगवान विष्णु को धारण करने वाले आदिशेष को अपनी माता प्राप्त हो गई थी,जिसकी उसने कामना की थी। तत्क्षण गोणिका ने जल अपर्ण करते हुए अंजुलि में रेंगते हुए एक नन्हे प्राणी को पाया; वह तब और भी आर्श्चयचकित थी, जब वह नन्हा प्राणी मनुष्य का रूप धारण किया। जो भगवान शिव से प्राप्त वरदान के कारण हुआ था। इस प्रकार गोणिका को सूर्य और शिव के आशिर्वाद से योग्य पुत्र और उत्तराधिकारी की इच्छा पूर्ण हुई। इन्होंने बीस वर्ष की उम्र में लोलुपा नामक स्त्री से ब्याह रचाया। उनके पुत्र नागपुत्र थे।
योग गुरू पतंजलि ने योग की शिक्षा अपनी गुरू और माता गोणिका से तथा उसके परम् गुरू हिरण्यग्राभा से प्राप्त किया। उन्होंने सांख्य, वेद, उपनिषद्, कश्मीर शैव, ब्रह्मण धर्म, जैन धर्म और बौध्द धर्मकी भी शिक्षा प्राप्त की। पतंजलि महासर्प अनंत के अवतार थे , अर्थात जो कभी समाप्त न हो।
पतंजलि एक महान नर्तक थे, वे भारतीय नर्तकों द्वारा उनके संरक्षक के रूप में पूजनीय हैं। संदेहास्पद स्थिति यहाँ उत्पन्न होती है कि क्या नर्तक पतंजलि वही पतंजलि हैं जिन्होंने प्रसिध्द योग -सूत्र की रचना की थी? योग -सूत्र के उपरांत उनकी प्रसिध्द रचना थी महान संस्कृत व्याकरण “अष्टाध्यायी” को आधार बनाकर उसके ऊपर टिप्पणी करना उनसे संबंधित साक्ष्यों को और अधिक विवाद के घेरे में डालती है। संस्कृत व्याकरण्ा अष्टाध्यायी को आधार बनाकर पतंजलि ने संस्कृत व्याकरण “महाभाष्य” (Great Commentary) प्रस्तुत की। आयुर्वेदिक औषधियों के ऊपर भी इनकी अनेक रचनाएँ उपलब्ध थीं परंतु इसे विद्वानों द्वारा पूर्णत: स्वीकृत और स्थापित नहीं किया गया । इसी प्रकार यह भी विवाद का विषय रहा है कि क्या संस्कृत व्याकरण महाभाष्य के रचयिता वही पतंजलि हैं जिन्होंने योग -सूत्र को स्थापित किया था, अथवा कोई अन्य पतंजलि है? यहाँ योग -सूत्र और महाभाष्य के दर्शन में एक विरोध की व्याप्ति है।
अत: ऐसा माना जाता है कि अलग-अलग पतंजलि एक प्रसिध्द पहचान को प्राप्त करने हेतु अपने नाम और कार्य को इससे जोड़ते चले गए, जो किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के संघर्ष के संकलन से प्राप्त किया गया था।
योग -सूत्र का रचना- काल संभवत: 200 ईसा पूर्व था। पतंजलि अपने कार्य के कारण योग के जनक के रूप में प्रसिध्द हैं। योग -सूत्र, योग का प्रबंध है; जिसका निमार्ण सांख्य के अनुशासन और हिंदू धर्मग्रंथ भगवत् गीता पर किया गया है। योग वह विज्ञान है जो ध्यान को एकत्र (केन्द्रित) करता है। यह पुराण, वेद तथा उपनिषद् में भी व्याख्यायित है। निश्चय ही यह आज भी यह एक महान कार्य है जो हिंदू धर्मग्रंथ में जीवित है; योग व्यवस्था के आधार पर जिसे राज योग के नाम से जाना जाता है। पतंतलि का योग हिंदुओं के छ: दर्शन में एक है, पूर्व संदर्भ के रूप में जो संदर्भ प्राप्त है , उसमे प्रसिध्द योग अष्टांग योग का विवरण दिया गया है, उसके आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि।
पतंजलि का महाभाष्य (Great Commentry) ,पाणिनि के तीन प्रसिध्द संस्कृत व्याकरणों में से एक बहुचर्चित व्याकरण अष्टाध्यायी पर आधारित संस्कृत व्याकरण है, इसके सहयोग से वैयाकरण पतंजलि ने भारतीय भाषाविज्ञान को एक नया रूप प्रदान किया। उन्होंने जिस व्यवस्था की स्थापना की उसमे अधिक विस्तृत में शिक्षा (ध्वनिविज्ञान, जिसमें उच्चारण के ढंग , बलाघात भी संकलित है।) और व्याकरण (रूपविज्ञान) को समझाया गया है। वाक्यविज्ञान पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है परंतु निरूक्त (व्युत्पतिविज्ञान ,Etymology) पर विस्तृत चर्चा की गयी हैऔर यह उत्पतिशास्त्र प्राकृतिक रूप से शब्दार्थ की व्याख्या करता है। विद्वानों के अनुसार उनका कार्य पाणिनि का प्रतिवाद था, जिसके सूत्रों को अर्थपूर्ण रूप से विस्तार प्रदान किया गया है। उन्होंने कात्यायन पर भी आक्रमण किया जो किंचिंत ही कठोरपूर्ण था,परंतु पतंजलि का मुख्य योगदान उनके द्वारा व्याकरण के सिध्दांतों को संशोधित करते हुए उन्हें दृढ़तापूर्वक प्रतिपादित करने में है। पतंजलि अपने योग प्रबंध में विभिन्न विचारों का प्रतिवाद करते हैं जो कि संख्य अथवा योग के मुख्यधारा में नहीं है। कुशल जीवनी लेखक, विशेषज्ञ, विद्वान कोफी बुसिया ( Kofi Busia ) के अनुसार वे स्वीकार करते थे कि सम्मान या अपने बारे में निर्मित धारणा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है, सूक्ष्म शरीर ( लिंग शरीर ) स्थाई रूप से इसका ध्यान नहीं रखता। वे आगे कहते हैं कि इसके द्वारा बाह्य तत्व पर प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखा जा सकता है।यह पारंपरिक सांख्य और योग के अनुसार नहीं जुड़ा है।
स्पष्टत: पतंजलि वास्तव में एक वास्तविक चिंतक और विचारक थे। उन्हें योग का सच्चा ज्ञान था न कि वे सिर्फ उसके संकलनकर्ता मात्र थे। उन्होंने ना तो कभी किसी अन्य के द्वारा कहे हुए कथन को कहा और न ही किसी दूसरे के कथन को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने किसी दूसरे का खंडन भी नहीं किया । विश्वसनीयता हेतु उनकी प्रतिभा योग दर्शन के तर्क में अनेक पंक्तियों को समाहित करती है। इसका संदर्भ वेद, उपनिषद् के कुछ काल खंडो में प्राप्त होता है। उन्होंने धूमिल और अस्पष्ट तत्व को स्पष्ट किया और जो निराकार था उसे यर्थाथ बनाया। बहुप्रसिध्द योग संरक्षक बी. के. एस. लिएनगर ¼ B.K.S. Lyegar)का मानना है कि इन्हीं तत्वों से वर्तमान शिक्षकों और अभ्यासकर्ताओं को आज भी प्ररेणा मिलती है।
कुछ अनुवादकों के अनुसार वे एक शुष्क प्रयोगिक, विचारार्थक प्रस्तुतकर्ता है परंतु कुछ अन्य विचारकों के अनुसार वह एक सहानुभूतिशील, मानवीय गुणों से युक्त, विनोदपूर्ण साथी तथा आत्मिक निर्देशक हैं।
वास्तव में वे और उनके योग के व्यवहारिक सारांश तत्व सम्मानीय और महान थे। वे योग विज्ञान में किसी व्यक्ति विशेष के ध्यान को केन्द्रित करने वाला तत्व (योग) के परिचायक अथवा महान सूत्रधार थे।

संदर्भ :
:Quotes – of – wisdom .euA Patanjali- Biography of Patanjali on Quotes of Wisdom

1 टिप्पणी:

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