धनजी प्रसाद
एम। ए। हिंदी (भाषा प्रौ।)
भाषाविज्ञान मेँ भाषा का अध्ययन करते हुए हमें मुख्यतः तीन प्रकार की व्यवस्थाएँ प्राप्त होती हैँ-
1. ध्वनि व्यवस्था
2.व्याकरणिक व्यवस्था
3. आर्थी व्यवस्था
इन सभी के अध्ययन के लिए भाषाविज्ञान की अलग-अलग शाखाएँ हैँ। यदि उपरोक्त मेँ अर्थ के अध्ययन की बात की जाय तो इसके संदर्भ मेँ अभी भी बहुत कम भाषावज्ञानिक कार्य हो सका है। भारत मेँ पारम्परिक वैयाकरणोँ द्वारा इस पर कार्य किया गया है। पश्चिमी अर्थ वैज्ञानिकोँ द्वारा अलग-अलग विधियोँ से प्रयास किया गया है। इनमेँ से एक सिद्धांत का नाम
संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान (cognitive semantics) है।
संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान (cognitive semantics) संज्ञानात्मक व्याकरण का एक भाग है। यह अर्थ को प्रत्ययीकरण (conceptualization) के साथ जोडता है। प्रत्ययीकरण मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) और संरचनाओं (structures) का एक भाग है। इसमें अर्थ को संपूर्णता के साथ देखा जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी एंटिटी (entity) के संदर्भ में प्रत्येक ज्ञात वस्तु उसके अर्थ में योगदान देती है। इसी कारण कोशीय
मद (lexical items) प्रायः बहुअर्थी (polysemous) होते हैं और उनका विश्लेषण संबंधित भावों के संजाल (network of related senses) के रूप में किया जाता है।
संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान के क्षेत्र में पिछले 3-4 दशकों में कुछ अर्थवैज्ञानिकों द्वारा प्रयास किया गया है जिनमें लैंगाकर (Langacker), टाल्मी (Talmy), और लैकोफ (Lakoff) आदि उल्लेखनीय हैं।
संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान और भाषिक वर्ग (cognitive semantics and linguistic categories)_ संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान भाषिक वर्गों और मानसिक अनुभवों के वर्गों की आवश्यक अविच्छिन्नता (essential continuity) पर बल देता है। इसमें विश्व के ज्ञान (knowledge of word) और अर्थ के ज्ञान में भेद नहीं किया जाता। इस प्रकार से यह अधिक प्रत्यावर्ती ढंग से अर्थ की व्याख्या करता है।
शब्द और अर्थ मुख्यतः अपने विशेष क्षेत्रों से जुड़े होते हैं। जैसे- ‘हाथ’ (hand) शब्द मानव शरीर रचनाशास्त्र से जुड़ा हुआ है। इस द्र्ष्टि से बाँह को इसका आधार माना जा सकता है। यद्य्पि कभी-कभी अर्थ अपने विशेष क्षेत्रों की सीमा के बाहर हो जाते हैं। जैसे- अभी एक हाथ दूंगा। (यहाँ पर हाथ का अर्थ थप्पड़ से है।) इसी प्रकार, ‘अब सब कुछ आपके हाथ में है।‘ (यहाँ पर हाथ में का अर्थ ‘कार्यक्षेत्र् के अंदर से है।) इस प्रकार के अर्थ के क्षेत्रों में विस्तार को लैकोफ द्वारा ‘अनुभवात्मक मापन में आधायन’ (embeddedness in experiential mappings) कहा गया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान मुख्य रूप से मानसिक अनुभवों (mental experiences) से संबंधित है। इसके किसी कोशीय मद का अन्वय ‘संज्ञानात्मक विशेष क्षेत्रों’ (cognitive domains) , जैसे- स्थान, समय, (space, time) आदि के साथ-साथ अनेक तथ्यों पर निर्भर करता है।
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