सत्येन्द्र कुमार
पी-एच।डी. हिन्दी (भा.प्रौ.)
पी-एच।डी. हिन्दी (भा.प्रौ.)
शैली अंग्रेजी शब्द ‘स्टाइल’ का हिंदी रुपातंरण है जो ‘स्टीलस’(stylus) ग्रीक और लैटिन शब्द से व्युत्पन्न हुआ है, जो अपने आरंभिक समय में ग्रमोफोन कि सुई का अर्थ देती थी। इसके उपरांत धूप घडी एवं मोम की पट्टियों पर, जिस धातु से बनी नुकीली छडी/कलम से लिखा जाता था उसके लिए प्रयुक्त होने लगा। इसके अलावा ‘स्टाइल’ शब्द के पौराणिक नामों ‘स्टएर’ (staera=पर्वत,शीर्ष), ‘स्टाइलोस’ (stilos=स्तम्भ), ‘स्ताइलुस्स’ (stilus) को क्रमश:अवेस्ता, ग्रीक और लैटिन में देखा जा सकता है। शैली के ये प्राचीनतम अर्थ वर्तमान अर्थ से काफी भिन्न हैं।
शैलीविज्ञान के क्षेत्र में शैली का प्रयोग चार्ल्स बेली ने बोली के संदर्भ में किया। शैली विमर्श के संदर्भ में प्रथम अंतरराष्ट्रीय सेमिनार इंडियाना यूनिवर्सिटी और अमेरिका के सोसल रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में किया गया, जिसमें भाषाविदों, मनोवैज्ञानिकों एवं साहित्यालोचकों द्वारा विचार विमर्श हुआ।
शैली प्रादुर्भाव होने के तीन प्रकार हैं- व्यक्तिनिर्मित,व्यक्तिनिर्वाचित और समाजनिर्वाचित। शैलीविज्ञान यह मानकर चलता है कि साहित्य शाब्दिक कला है। तो साहित्य के मर्म को समझने का उपकरण भी शब्द (भाषा) ही है। अत: शैलीविज्ञान कि द्रिष्टि मूलत: भाषावादी है। बेनिसन ग्रे ने शैली के कई आयामों कि बात की है। उनके अनुसार शैली मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यवहार रूप, साहित्य एवं अलंकारशास्त्रिय दृष्टिकोण से वक्ता रूप, भाषाशास्त्री साइकोलाजिस्ट के दृष्टिकोण से प्रच्छन्न (लैटेंट) रूप, साहित्यालोचक के दृष्टिकोण से व्यक्तित्व रूप, दार्शनिक दृष्टिकोण से विवक्षित वक्ता रूप एवं भाषावैज्ञानिक दृष्टिकोण से भाषा रूप है।
संक्षेप में शैली इस संसार में पाई जाने वाली अनेकरूपताओं में से किसी एक का चयन है। इसका अस्तित्व हमारे जीवन में है। यह एक अवधारणात्मक (notional) शब्द है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है। कार्य को करने या समझने की रीति-विशेष के रूप में शैली का अस्तित्व है और इसकी अपनी सत्ता है।
शैलीविज्ञान के क्षेत्र में शैली का प्रयोग चार्ल्स बेली ने बोली के संदर्भ में किया। शैली विमर्श के संदर्भ में प्रथम अंतरराष्ट्रीय सेमिनार इंडियाना यूनिवर्सिटी और अमेरिका के सोसल रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में किया गया, जिसमें भाषाविदों, मनोवैज्ञानिकों एवं साहित्यालोचकों द्वारा विचार विमर्श हुआ।
शैली प्रादुर्भाव होने के तीन प्रकार हैं- व्यक्तिनिर्मित,व्यक्तिनिर्वाचित और समाजनिर्वाचित। शैलीविज्ञान यह मानकर चलता है कि साहित्य शाब्दिक कला है। तो साहित्य के मर्म को समझने का उपकरण भी शब्द (भाषा) ही है। अत: शैलीविज्ञान कि द्रिष्टि मूलत: भाषावादी है। बेनिसन ग्रे ने शैली के कई आयामों कि बात की है। उनके अनुसार शैली मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यवहार रूप, साहित्य एवं अलंकारशास्त्रिय दृष्टिकोण से वक्ता रूप, भाषाशास्त्री साइकोलाजिस्ट के दृष्टिकोण से प्रच्छन्न (लैटेंट) रूप, साहित्यालोचक के दृष्टिकोण से व्यक्तित्व रूप, दार्शनिक दृष्टिकोण से विवक्षित वक्ता रूप एवं भाषावैज्ञानिक दृष्टिकोण से भाषा रूप है।
संक्षेप में शैली इस संसार में पाई जाने वाली अनेकरूपताओं में से किसी एक का चयन है। इसका अस्तित्व हमारे जीवन में है। यह एक अवधारणात्मक (notional) शब्द है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है। कार्य को करने या समझने की रीति-विशेष के रूप में शैली का अस्तित्व है और इसकी अपनी सत्ता है।
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