08 सितंबर 2009

त्रुटि–विश्लेषण (भाषा–शिक्षण के सन्दर्भ में)

हर्षा वडतकर

भाषा विचारों को व्यक्त करने का मौखिक साधन है। हम अपने विचार भाषा के द्वारा दूसरे व्यक्ति तक पँहुचाते है। अपने विचारों को स्पष्ट एवं प्रभावी रूप से अभिव्यक्त करने के लिए भाषण में उच्चारणगत स्पष्टता होना अनिवार्य है। इसलिए भाषा सीखते समय भाषायी कौशलों का ध्यान रखा जाता है। भाषा की संरचना भिन्न होने से भाषा में समान और असमान तत्वों का होना स्वाभाविक है इसके कारण द्वितीय भाषा सीखने में कठिनाई होती है। इन कठिनाईयों को दूर करने के लिए भाषा शिक्षण में कई पद्धतियों का विकास किया गया जिसे द्वितीय भाषा सीखना आसान हो गया है जैसे व्यतिरेकी विश्लेषण, त्रुटि विश्लेषण आदि।
भाषायी अध्ययन में भाषा सीखते समय जो कठिनाईयाँ आती है उसे व्यतिरेकी विश्लेषण के अन्तर्गत रखा जाता है। अर्थात् इस पद्धति के द्वारा असमानताओं का अध्ययन किया जाता है और भाषा सीखने में होनेवाली भाषागत कठिनाईयों का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में त्रुटि विश्लेषण पद्धति का विकास व्यतिरेकी विश्लेषण की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ क्योंकि भाषा सीखने की प्रक्रिया को अगर प्रभावशाली बनाना है तो व्यतिरेकी विश्लेषण के साथ–साथ त्रुटि विश्लेषण होना जरूरी है। क्योंकि व्यतिरेकी विश्लेषण से भाषा शिक्षण की सभी त्रुटियों को नहीं पकड़ा जा सकता, त्रुटि विश्लेषण का तात्पर्य यह है कि अन्य भाषा अधिगम की प्रक्रिया में अध्येताओं द्वारा की जानेवाली त्रुटियों के अध्ययन हेतु अपनायी जानेवाली वह भाषावैज्ञानिक पद्धति जो अन्य भाषा शिक्षण को प्रभावशाली बनाती है। शिक्षार्थी द्वितीय भाषा सीखने के बाद जो गलती करता है जिसकी पुनरावृत्ति होती है उसे त्रुटि कहा जाता है। इसलिए त्रुटि विश्लेषण भाषा शिक्षण प्रक्रिया समाप्त होने के बाद की प्रक्रिया है। जबकि व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण शुरू होने के पहले की प्रक्रिया है।


भाषा सीखते समय निम्नलिखित कारणों से त्रुटियॉं होती है:–
मातृभाषा व्याघात :
द्वितीय भाषा सीखने वाले छात्रों पर मातृभाषा का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। क्योंकि शिक्षार्थी द्वितीय भाषा की ध्वनियों को अपनी पहली सीखी हुई भाषा के ध्वनियों के सन्दर्भ में ग्रहण करता है।
लक्ष्यभाषा की संरचनात्मक जटिलता :
भाषा की संरचना भिन्न होेने से द्वितीय भाषा सीखने वाले छात्र भाषा के कुछ स्तरों पर अधिकार प्राप्त नहीं कर पाते। इसलिए अन्य भाषा–भाषियों के लिए यह कठिनाई होती है।
उपयुक्त शिक्षण सामग्री अथवा शिक्षकों का अभाव होने के कारण छात्रों की भाषाओं में उच्चारणगत अशुद्धियाँ आती है। इसके अलावा उच्चारण मानक भाषा से थोड़ा भिन्न होता है।
छात्रों की मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण भी कई त्रुटियाँ हो सकती है। इसके अलावा विषय या शब्दावली से अपरिचित होने के कारण भी त्रुटियाँ होती है।

अंतत: त्रुटि विश्लेषण भाषा शिक्षण में अत्यंत उपयोगी पद्धति है। भाषायी अध्ययन में त्रुटियों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। छात्रों को भाषा का मानकीकरण, व्याकरणिक नियमावली का उल्लेख कोश एवं परिभाषित शब्दावली का निर्माण आदि का ज्ञान छात्रों को इस पद्धति द्वारा हो सकता है इसके अलावा भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक पाठ्य सामग्री को तैयार किया जा सकता है। अनुवाद के क्षेत्र में छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए इस पद्धति द्वारा निकाले गए निष्कर्ष काम आ सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें