17 सितंबर 2009

संपादक के की-बोर्ड से

हिन्दी देश में सर्वाधिक बोली और प्रयोग की जाने वाली भाषा है। भारत के संविधान के अनुसार हिन्दी भाषा को संघ की राजभाषा का स्थान दिया गया है।आज से 60 वर्ष पहले 9 सितम्बर 1949 के दिन हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था, किन्तु राष्ट्र्भाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 में पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भाषा सामाजिक व्यवहार के आदान–प्रदान का माध्यम है। विश्व में हजारों भाषाएं और बोलियां बोली जाती है, जिसमें अनेक दृष्टियां, जीवन–शैलियां और साहित्य अभिव्यक्त होते हैं। भाषा के माध्यम से मनुष्य अपने पूर्वजों के विचारों को जान पाता है और भविष्य निर्माण की रूपरेखा भी तैयार करता है। आधुनिक भाषा विज्ञान को तकनीकी के साथ जोड़ने से अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान का क्षेत्र व्यापक हुआ है जिसमें हम भाषा के विविध अनुप्रयोगों को देखते हैं। हमारा यह विशेषांक 14 सितम्बर के उपलक्ष्य में तैयार किया गया इसके अतिरिक्त हमने कई आलेखों को प्रयास पत्रिका में सम्मिलित किया है। भाषा मूलत: सामाजिक यथार्थ है जो सामाजिक उपकरणों एवं संदर्भों के साथ जुड़कर व्यावहारिक बनती है। भाषा विज्ञान की वह शाखा जो भाषा का इस दृष्टि से अध्ययन करती है वह समाजभाषा विज्ञान कहलाती है। समाजभाषा विज्ञान के अंतर्गत लेबाव के जीवन परिचय का वृतांत प्रस्तुत किया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज प्रौद्योगिकी अधिक उन्नत हो रही है। इस क्रम में सूचना भंडारण की एक आधुनिकतम पद्धति लोकप्रिय होती जा रही है जिसे यूनिकोड कहा जाता है। यूनिकोड आधारित कम्प्यूटरों में हर काम किसी भारतीय भाषा में किया जा सकता है। प्रत्येक वेबसाइट अलग–अलग फोंट का उपयोग होने के कारण सर्च इंजनों के लिए उनकी विषय–वस्तु को समझना होता है। यूनिकोड के प्रयोग से यही कार्य आसान हो गया है। यूनिकोड के उपयोग के साथ यूनिकोड की संकल्पना को इसमें स्पष्ट किया है। परंपरागत भाषाविज्ञान में जो कार्य मनुष्य की काफी मेहनत के बाद पूरा होता था वह कार्य आधुनिक भाषाविज्ञान के युग में कम्प्यूटर द्वारा करने का प्रयास किया जा रहा है यह परंपरागत बनाम आधुनिक भाषाविज्ञान की तुलना कर दिखाने की कोशिश इस अंक में की गयी। साथ ही साथ भारत में हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी का अधिक प्रयोग होता है जबकि संघ की राजभाषा हिन्दी है तो भारत में हिन्दी भाषा की स्थिति की ओर पाठकों का ध्यान खींचने की कोशिश की गई है।
अर्चना बलवीर

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