सुमेध हाड़के
एम.ए.-हिन्दी (अनुवाद-प्रौद्योगिकी)
एम.ए.-हिन्दी (अनुवाद-प्रौद्योगिकी)
बीसवीं सदी का विश्व मौलिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। औद्योगिक क्रान्ति की आधारशिला वाली अर्थव्यवस्था से आज विश्व एक ऐसी अभिनव अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है जिससे समाज वैश्वीकरण की ओर प्रवेश कर चूका है। वैश्वीकरण का केन्द्रीय तत्व है- सूचना और ज्ञान की विश्वव्यापी सर्वसुलभता साधनों का वाणिज्यीकरण और प्रौद्योगिकी आश्रित कार्यक्रमों का उपकरण के रुप में अधिक से अधिक विकास करना है। सूचना प्रौद्योगिकी के युग में भाषा को मनुष्य की आवश्यकताओं के अलावा मशीन कम्प्यूटर को नित नई मांगों को पूरा करना पड़ रहा है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आज भाषा से अधिक प्रौद्योगिकी का महत्व बढ़ रहा है। लेकिन ज्ञान-विज्ञान के लिए भाषा के माध्यम से ही आगे बढ़ा जा सकता है। भाषा विज्ञान के क्षेत्र विशेष में भाषा के अध्ययनों का विकास हुआ जो किसी न किसी रुप में प्रौद्यागिकी तक जा पहुंचा है और भाषा की प्रकृति अर्थ संभावनाओं पर चिन्तन कर भाषा की गहराईयों का पता लगाया जा रहा है।
भाषा की संरचना सौष्ठव से अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। सूचना का संरक्षण, सम्प्रेषण और दुसरी और शब्द रचना के व्याकरणिकरण के कारण भाषा में सुबोधता और प्रयोग में सुलभता आई है। ई-मेल, मोबाईल संदेश और विज्ञापन में प्रयुक्त भाषा-रुप इसके उदाहरण हैं। अत: भू-मंडलीकरण तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से भाषा का स्वरुप बदल गया है ।
1.अर्थ का बदलता आयाम :
आज जिस तेज गति से कम्प्यूटर और सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नये उपकरण नई संकल्पनाएँ और नयी व्याख्या सामने आ रही है, उसी तेजी से नये शब्दों में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। शब्द और अर्थ के बीच द्वंद्व की स्थिति पैदा हो रही है।
2. शब्द निर्माण का बदलता आयाम :
कम्प्यूटर टेक्नोलोजी का एक महत्वपूर्ण प्रभाव भाषा की शब्दावली और शब्द-निर्माण प्रक्रिया पर पड़ रहा है। कम्प्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी स्वयं अंग्रेजी भाषा की शब्दावली, शब्द रचना पद्धति और अभिव्यक्ति शैली में एक अभूतपूर्व क्रान्ति ला चूकी है। अभी तक सामान्यत: शब्द निर्माण के लिए प्रत्यय, उपसर्ग के योग से अर्थात संश्लेषणात्मक पद्धति का अनुसरण किया जाता था और नये शब्दों का निर्माण किया जाता था। जैसे- Orthopaedics,Dermatology, Metamorphosis, Ophthalmology Gynaecology आदि अनेक भाषाओं में शब्दनिर्माण की संश्लिष्ट पद्धति कहलाती है। जिसका अनुसरण संस्कृत ,हिन्दी तमिल आदि अनेक भाषाओं में परम्परागत रूप से किया जाता रहा है।
कम्प्यूटर वैज्ञानिकों के द्वारा भाषा को अधिक आसान तथा आकर्षक बनाया गया ताकि भाषा के माध्यम से आम आदमी भी नजदीक आए। दरअसल आज कम्प्यूटर की शब्दावली को गढ़ने की बजाए उसे विस्तार करने की अधिक जरुरत है जिसे हिन्दी में रचित कम्प्यूटर साहित्य और सॉफ्टवेयर सामान्य प्रयोक्ताओं को बोधगम्य हो सकें।
3. भाषा का मानकीकरण :
कम्प्यूटर भाषा से कई अपेक्षा करता है जिनमें सबसे पहला है भाषा का मानकीकरण। इसके अंतर्गत भाषा की लिपि, वर्तनी, शब्दावली और प्रतीक आदि का मानकीकरण शामिल है। मानकीकरण के दो प्रमुख सोपान कोडीकरण और विस्तारीकरण हैं। कोडीकरण का तात्पर्य भाषा में एक ही प्रकार्य के लिए प्रयुक्त रुपों की विविधता को कम-से-कम करना। जैसे हम हिन्दी में एक ही वर्ण को दो या अधिक रुप में लिखतें हैं तो इनमें से एक ही रुप को मानक स्वीकार करें जैसे हिन्दी/हिंदी। भाषा मानकीकरण प्रक्रिया का दूसरा सोपान विस्तारीकरण है, भाषा व्यवहार के अधिक से अधिक क्षेत्र में इन मानकीकृत रूपों का व्यापक प्रयोग सुनिश्चित करना दूसरे शब्दों में, एकाधिक विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करके उसे रुढ़ कर देना ही मानकीकरण के लिए प्राप्ति नहीं है इस प्रक्रिया में शब्दों का प्रयोग परीक्षण भी होता है और इन्हें समाजिक स्वीकृति या अस्वीकृति भी मिलती है।
भाषा का संबंध समाज से होने के कारण सामाजिक भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले शब्दों में सामाजिक परिस्थितियों के सापेक्ष निरंतर बदलाव एक स्वभाविक एवं चिरंतन प्रक्रिया है। अंग्रेजी भाषा में हिन्दी तथा देवनागरी लिपि की तुलना में लाख कमियाँ होने के बावजुद उसके अंतरराष्ट्रीय विस्तार एवं स्वीकार्यता के पीछे इस तथ्य ने काम किया है। लेकिन इनमें सूचना प्रौद्योगिकी का काफी प्रभाव पड़ा है, जो एशियाई पड़ोसी जापान, कोरिया ,हांगकांग, चीन की तुलना में भारत अपने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शोध समुदाय को अन्तरराष्ट्रीय स्तर का आंकड़ा उपलब्ध कराने में काफी पीछे हैं। 1980 के दशक के राष्ट्रीय स्तर पर कुछ आंकड़ा संचय सुविधाओं का स्थापना करके कुछ प्रगति जरुर हुई थी। यद्यपि इससे अनुसंधानों को कुछ हद तक आंकड़ा संचय सुविधाएं उपलब्ध हो गयी किन्तु यह अपेक्षा से काफी कम हुई थी।
निष्कर्षत: यह कह सकते हैं कि सूचना-प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण के दौर में भाषा संप्रेषण को ज्यादा महत्व दिया है जिसके कारण संचार व्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। ऐसी अपेक्षा की जा सकती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विद्यमान भाषा की समस्या को सुलझाने के लिए संगणक एवं प्रौद्योगिकी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। भारतीय वैज्ञानिक समुदाय अपेक्षित उद्देश्य के लिए सफलतापूर्वक इसका उपयोग करे तो भाषा की समस्या दूर हो जाएगी।
भाषा की संरचना सौष्ठव से अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। सूचना का संरक्षण, सम्प्रेषण और दुसरी और शब्द रचना के व्याकरणिकरण के कारण भाषा में सुबोधता और प्रयोग में सुलभता आई है। ई-मेल, मोबाईल संदेश और विज्ञापन में प्रयुक्त भाषा-रुप इसके उदाहरण हैं। अत: भू-मंडलीकरण तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से भाषा का स्वरुप बदल गया है ।
1.अर्थ का बदलता आयाम :
आज जिस तेज गति से कम्प्यूटर और सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नये उपकरण नई संकल्पनाएँ और नयी व्याख्या सामने आ रही है, उसी तेजी से नये शब्दों में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। शब्द और अर्थ के बीच द्वंद्व की स्थिति पैदा हो रही है।
2. शब्द निर्माण का बदलता आयाम :
कम्प्यूटर टेक्नोलोजी का एक महत्वपूर्ण प्रभाव भाषा की शब्दावली और शब्द-निर्माण प्रक्रिया पर पड़ रहा है। कम्प्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी स्वयं अंग्रेजी भाषा की शब्दावली, शब्द रचना पद्धति और अभिव्यक्ति शैली में एक अभूतपूर्व क्रान्ति ला चूकी है। अभी तक सामान्यत: शब्द निर्माण के लिए प्रत्यय, उपसर्ग के योग से अर्थात संश्लेषणात्मक पद्धति का अनुसरण किया जाता था और नये शब्दों का निर्माण किया जाता था। जैसे- Orthopaedics,Dermatology, Metamorphosis, Ophthalmology Gynaecology आदि अनेक भाषाओं में शब्दनिर्माण की संश्लिष्ट पद्धति कहलाती है। जिसका अनुसरण संस्कृत ,हिन्दी तमिल आदि अनेक भाषाओं में परम्परागत रूप से किया जाता रहा है।
कम्प्यूटर वैज्ञानिकों के द्वारा भाषा को अधिक आसान तथा आकर्षक बनाया गया ताकि भाषा के माध्यम से आम आदमी भी नजदीक आए। दरअसल आज कम्प्यूटर की शब्दावली को गढ़ने की बजाए उसे विस्तार करने की अधिक जरुरत है जिसे हिन्दी में रचित कम्प्यूटर साहित्य और सॉफ्टवेयर सामान्य प्रयोक्ताओं को बोधगम्य हो सकें।
3. भाषा का मानकीकरण :
कम्प्यूटर भाषा से कई अपेक्षा करता है जिनमें सबसे पहला है भाषा का मानकीकरण। इसके अंतर्गत भाषा की लिपि, वर्तनी, शब्दावली और प्रतीक आदि का मानकीकरण शामिल है। मानकीकरण के दो प्रमुख सोपान कोडीकरण और विस्तारीकरण हैं। कोडीकरण का तात्पर्य भाषा में एक ही प्रकार्य के लिए प्रयुक्त रुपों की विविधता को कम-से-कम करना। जैसे हम हिन्दी में एक ही वर्ण को दो या अधिक रुप में लिखतें हैं तो इनमें से एक ही रुप को मानक स्वीकार करें जैसे हिन्दी/हिंदी। भाषा मानकीकरण प्रक्रिया का दूसरा सोपान विस्तारीकरण है, भाषा व्यवहार के अधिक से अधिक क्षेत्र में इन मानकीकृत रूपों का व्यापक प्रयोग सुनिश्चित करना दूसरे शब्दों में, एकाधिक विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करके उसे रुढ़ कर देना ही मानकीकरण के लिए प्राप्ति नहीं है इस प्रक्रिया में शब्दों का प्रयोग परीक्षण भी होता है और इन्हें समाजिक स्वीकृति या अस्वीकृति भी मिलती है।
भाषा का संबंध समाज से होने के कारण सामाजिक भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले शब्दों में सामाजिक परिस्थितियों के सापेक्ष निरंतर बदलाव एक स्वभाविक एवं चिरंतन प्रक्रिया है। अंग्रेजी भाषा में हिन्दी तथा देवनागरी लिपि की तुलना में लाख कमियाँ होने के बावजुद उसके अंतरराष्ट्रीय विस्तार एवं स्वीकार्यता के पीछे इस तथ्य ने काम किया है। लेकिन इनमें सूचना प्रौद्योगिकी का काफी प्रभाव पड़ा है, जो एशियाई पड़ोसी जापान, कोरिया ,हांगकांग, चीन की तुलना में भारत अपने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शोध समुदाय को अन्तरराष्ट्रीय स्तर का आंकड़ा उपलब्ध कराने में काफी पीछे हैं। 1980 के दशक के राष्ट्रीय स्तर पर कुछ आंकड़ा संचय सुविधाओं का स्थापना करके कुछ प्रगति जरुर हुई थी। यद्यपि इससे अनुसंधानों को कुछ हद तक आंकड़ा संचय सुविधाएं उपलब्ध हो गयी किन्तु यह अपेक्षा से काफी कम हुई थी।
निष्कर्षत: यह कह सकते हैं कि सूचना-प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण के दौर में भाषा संप्रेषण को ज्यादा महत्व दिया है जिसके कारण संचार व्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। ऐसी अपेक्षा की जा सकती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विद्यमान भाषा की समस्या को सुलझाने के लिए संगणक एवं प्रौद्योगिकी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। भारतीय वैज्ञानिक समुदाय अपेक्षित उद्देश्य के लिए सफलतापूर्वक इसका उपयोग करे तो भाषा की समस्या दूर हो जाएगी।
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