26 नवंबर 2009

हिन्‍दी में प्रयुक्‍त परसर्गीय पदबंधों का विश्‍लेषणात्‍मक अध्ययन

चन्दन सिंह
पी-एच.डी. हिन्दी (भाषा-प्रौद्योगिकी)
व्याकरणिक नियमों से सुव्यवस्थित भाषा मानव जगत् के व्यवहार का सफल क्रियान्वयन करती है। मानव जगत् के इस मूलभूत तत्व का अध्ययन भाषाविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। व्यावहारिक स्तर पर भाषा विश्‍लेषण करने पर विचारों की लिखित या मौखिक अभिव्यक्ति के संदर्भ में वाक्य की महत्ता स्पष्‍ट हो जाती है। वाक्य की संरचना कुछ घटकों- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण, परसर्ग, निपात, अव्यय, संयोजन आदि से होता है। ये घटक तकनीकी शब्दावली में पदंबध कहलाते हैं। पदबंध वस्तुत: एक या एक से अधिक पदों के निबंधन से निर्मित व्याकरणिक इकाई होती है। वाक्य संरचना के विभिन्न घटकों में परसर्ग अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं, क्‍योंकि यह वाक्य संरचना को प्रभावित करते हैं। यद्यपि इनका कोशीय अर्थ तो नहीं होता किंतु इनका व्याकरणिक प्रकार्य महत्वपूर्ण होता है। हिन्दी में 'ने', 'को' ,'से' ,'में' ,'पर' ,'के' मूल परसर्ग कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त मिश्र व यौगिक परसर्ग भी होते हैं। परसर्ग ऐसे पदबंधो की रचना करते हैं जो संज्ञा, विशेषण या क्रियाविशेषण की भांति प्रकार्य करते हैं। ये पदबंध परसर्गीय पदबंध कहलाते हैं।
वाक्य संरचना में परसर्गीय पदबंध की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परसर्गों के स्थान परिवर्तन से पूरी वाक्य संरचना ही बदल जाती है और जब वाक्य संरचना बदलेगी तो निश्चित रुप से उसका अर्थ भी बदलेगा और यह भाषा में एक बड़ी समस्या को उत्पन्न करता है। यथा-'राम ने रावण को मारा।' इस वाक्य में प्रयुक्त परसर्गों 'ने' और 'को' का यदि परस्पर स्थान परिवर्तन कर दिया जाए तो वाक्य का स्वरूप-'राम को रावण ने मारा।' हो जाएगा, जो पूर्व वाक्य के विपरीत अर्थ दे रहा है। इसी प्रकार हिन्दी में परसर्ग में एक और समस्या यह उत्पन्न होती है कि किन परसर्गों का प्रयोग किन अर्थों में करें, जबकि एक ही अर्थ के लिए कई परसर्गों का प्रयोग किया जाता है, यथा -'पर'/के उपर, में/के अन्दर/के भीतर इत्यादि। इनके विपरीत कभी एक ही परसर्ग के अनेक अर्थ निकल आते हैं तथा कभी परसर्ग योग या परसर्ग वियोग से वाक्य विपरीत अर्थ देने लगता है। यथा-'वह विद्यालय से लौट आया' में से यदि 'से' परसर्ग हटा लिया जाए तो वाक्य विपरित अर्थ देगा।
यदि वाक्य संरचना के संदर्भ में परसर्गीय पदबंध की भूमिका पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि परसर्ग संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या कृदन्त के साथ कुछ नियमों के अधीन बहुतायत में प्रयुक्त होते हैं, किन्तु क्रियाविशेषण शब्दों के साथ इनका प्रयोग अपेक्षाकृत कम होता है। 'ने' परसर्ग तो क्रियाविशेषण-पदबंध की रचना ही नही करता है। वह केवल संज्ञा-पदबंध की रचना करता है, और वह भी केवल कर्ता कारक के साथ । किसी विशेष परिस्थिति में सरल परसर्गों के स्थान पर मिश्र/यौगिक परसर्ग भी प्रयुक्त होकर पदबंध संरचना करते हैं। परसर्गीय प्रयोग की यह वैकल्पिकता यथा-'को'/'के लिए', 'से'/'के साथ', 'पर'/'के उपर', 'में'/'के अंदर'/'के भीतर' आदि उनके संगत संज्ञा पदबंध के व्याकरणिक प्रकार्य से अनुबंधित होती है। उदाहरणार्थ- 'मुझ को नहाना है' के स्थान पर 'मेरे लिए नहाना है' वाक्य असंगत हो जाएगा जबकि 'मैं पढ़ने को जा रहा हूँ' के स्थान पर 'मैं पढ़ने के लिए जा रहा हँ' वाक्य प्रयुक्त हो सकता है। इसी प्रकार वाक्यगत क्रिया या अन्य घटकों द्वारा निर्मित संदर्भ भी परसर्गों के वैकल्पिक प्रयोग का आधार निर्मित करते हैं। उदाहरण स्वरूप 'चोर तेजी से भाग गया' के स्थान पर 'चोर तेजी के साथ भाग गया' सम्भव है, किन्तु 'वह दिल्ली से आया' के स्थान पर 'वह दिल्ली के साथ आया' वाक्य सम्भव नहीं है।
यदि हिन्दी के संदर्भ में कारक व्यवस्था, पदबंध एवं परसर्ग के परस्पर संबंधो पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि संज्ञा पदबंध पर संलग्न परसर्ग उसे एक निश्चित कारक प्रारूप में परिवर्तित कर देता है। अलग-अलग परसर्गों से संयुक्त होने पर एक ही संज्ञा पदबंध अलग-अलग कारकीय संबंधों को द्योतित करता है। यथा-मेरे छात्र से, मेरे छात्र में, मेरे छात्र ने, मेरे छात्र क़ो, मेरे छात्र पर, मेरे छात्र के, मेरे छात्र का, मेरे छात्र के लिए इत्यादि में संज्ञा पदबंध एक है किन्तु भिन्न-भिन्न परसर्ग उसे भिन्न-भिन्न कारकों में परिवर्तित कर देते हैं।
स्पष्‍ट है कि वाक्य के संदर्भ में परसर्गीय पदबंध के संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक आयाम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
(एम.फिल. उपाधि हेतु प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध का सारांश)

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