26 नवंबर 2009

अनुवाद में भाषाविज्ञान का महत्व

मधुप्रिया
एम.ए.-हिन्दी (भाषा प्रोद्योगिकी)
भाषा परंपरागत और अर्जित संपत्ति है। जिस प्रकार मनुष्य पारम्परिक विचार-विनिमय से लाभान्वित होता है। उसी प्रकार भाषा का विकास भी आदान-प्रदान से होता है। अर्जन की प्रकृति के कारण भाषा का विकास और परिष्कार होता है। आज बहुभाषिकता की दुनिया में अनुवाद कार्य दो भिन्न भाषा भाषियों के बीच सेतु के समान है। आज ज्यों-ज्यों संसार के विभिन्न भागों के लोग एक दूसरे के निकट आ रहे हैं तथा भाषाओं एवं राजनीति की सीमाओं को भुलकर एक दूसरे को समझने, जानने का प्रयत्न कर रहे हैं त्यों-त्यों अनुवाद एक आवश्यक सेतु के रूप में प्रयोग होता है। भाषा परिवर्तनशील है और यह परिवर्तन कई कारणों से होता है फलत: भाषा में नये शब्दों का निमार्ण भी होता है नए शब्द या तो उसी भाषा के आधार पर या दूसरी भाषा से अनुदित होकर प्रयोग में लाए जाते हैं। इस परिवर्तन से भाषा की अभिव्यंजना शक्ति, माधुर्य तथा ओज की दृष्टि से उँची उठ सकती है या नीचे भी जा सकती है।
वैश्वीकरण के युग में अनुवाद की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गयी है जब से पश्चिमी देशों से परिचय हुआ है। सभी देशों की भाषा जनसामान्य तक पहुंचाने का एक ही माध्यम है- अनुवाद । प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह एक या दो से अधिक भाषाएं भली भांति सीख सके इसलिए यह आवश्यक है कि उनके लिए वैज्ञानिक तथा तकनीकि साहित्य अपनी भाषा में उपलब्ध कराया जाए।
अनुवाद और भाषाविज्ञान का सीघा संबंघ है। अनुवाद भाषांतरण की एक प्रक्रिया है, जिसमें स्त्रोत भाषा की विषय वस्तु को लक्ष्य भाषा में रूपांतरित किया जाता है। मशीनी अनुवाद तो भाषा-विज्ञान की देन है। आज सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते युग में अनुवाद का महत्व और बढ़ गया है। अत: अनुवाद करते समय भाषा विज्ञान की दृष्टि से अनुवाद को बहुत सावधानी रखनी होती है। अनुवाद करते समय मूल पाठ को महत्व देते हुए अनुवाद करना होता है। अनुवाद को लक्ष्य भाषा में अभिव्यक्ति करते समय जहाँ मूल पाठ के भाव को सुरक्षित रखना होता है वहीं वाक्यविन्यास, लक्ष्य भाषा की संरचना, प्रकृति और प्रयोग के अनुरूप प्रस्तुत करना होता है। संपूर्ण अनुवाद में अनुवादक को स्त्रोत भाषा के शैली को सुरक्षित रखते हुए रचना के समग्र प्रभाव को कायम रखना होता है। अभिव्यक्ति में मानकीकृत वर्तनी तथा शब्दावली की एकरूपता का ध्यान रखना होता है।
इन सावधानियों के बाद भी एक अच्छे अनुवाद से विषय विशेष से संबंधी अनेक अपेक्षाएं रखी जाती हैं। विभिन्न क्षेत्र के विषय में अनुवाद करते समय एक अच्छे अनुवादक को संबंधित विषय का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि विज्ञान या गणित से संबंधित विषय है, तो अनुवादक को इस विषय का विशेष ज्ञान रखना चाहिए।
अनुवाद में लिप्यंतरण का भी विशेष महत्व है और अनुवादक को लिप्यंतरण पद्धति को अपनाना चाहिए। लिप्यंतरण का वैज्ञानिक अनुवाद में विशेष महत्व है। जो लोग वैज्ञानिक प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं वे अनुवाद के धरातल पर अग्रेंजी और हिन्दी की विज्ञानपरक अनुवाद स्थिति से भली भांति परिचित होगें । जिस गति से अंग्रेजी में विज्ञान लेखन हो रहा है उस गति से वैज्ञानिक अनुवाद नहीं । अत: अनुवाद में किसी भाषा के क्लिष्ट शब्द को अपनाने के स्थान पर मूल भाषा के शब्दों में ही लिप्यंतरित करने की जरूरत जिससे विद्यार्थी के मन में शब्दों को लेकर भ्रम की स्थिति न उत्पन्न हो। उदाहरण के लिए-
इलेक्ट्रॉन
प्रोटॉन
इन शब्दों को यदि हिन्दी के शब्दों में रूपांतरित किया जाए तो भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अनुवाद में सांस्कृतिक शब्दों का चयन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी शब्द प्रोसीजन के सांस्कृतिक और सामाजिक अनेक अर्थ हैं। प्रोसीजन अधिकांशत: राजनीतिक पृष्ठभूमि में अत्यधिक होते हैं। राजनीतिक संदर्भ में प्रोसीजन का अर्थ प्राय: जुलूस या प्रदर्शन माना जाता है। लेकिन मॅरेज प्रोसीजन में प्रोसीजन के लिए 'बारात' शब्द अधिक सटीक है। अनुवाद में अर्थ विश्लेषण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अर्थ विश्लेषण करते समय अर्थ परिवर्तन की दिशाओं पर अनुवादक को अवश्य ध्यान देना चाहिए। यह अर्थ देश, काल, परिस्थिति और प्रयोजन सापेक्ष हो सकता है। अनुवाद का अर्थ विश्लेषण करते समय अनुवादक को विषय संबंधित शब्द का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
अत: आज के युग के मांग की उपज 'अनुवाद' है। संसार का समग्र ज्ञान पाने के लिए जीवन सीमित है और यह समग्र ज्ञान-विज्ञान किसी एक भाषा में समाहित नहीं है। ऐसी स्थिति में अनुवाद का अपना विशेष महत्व है जिसकी कल्पना भाषा के बगैर नहीं की जा सकती।

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