भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत भित्ति पत्रिका 'प्रयास' का नवीनतम अंक आपके सामने प्रस्तुत है। प्रयास पत्रिका जहाँ एक ओर किसी ध्येय को हासिल करने की ख्वाइश रखती है वही दूसरी और भाषा-विज्ञान तथा भाषा के तकनीकी पक्ष को लेकर ऐसे बिन्दुओं को सामने लाने की कोशश करती है, जो पाठकों के ध्यान का केन्द्र बनती है। इस पत्रिका में भाषा-विज्ञान तथा भाषा के अन्य क्षेत्रों से जुड़े सभी विद्यार्थी और शोधार्थी को अपने विचार प्रकट करने का मौका मिल रहा है।
भाषा मानव जाति की सोच को विस्तार प्रदान करने वाली एक व्यवस्था है। भाषा के तकनीकी विकास के कारण भाषा-विज्ञान का क्षेत्र अधिक विस्तृत हो गया है। जहाँ भाषा का अध्ययन केवल सैद्धांतिक दृष्टि से ही होता था वहां अधिकांश भाषा वैज्ञानिक भाषा को कम्प्यूटर के साथ किस तरह से जोड़ा जाये अर्थात संगणकीय व्याकरण निर्माण करने की ओर लगे हुए हैं। यह भाषा का अनुप्रयुक्त क्षेत्र है अर्थात अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान की भाषाओं में अनुवाद, शैली-विज्ञान, समाज भाषा-विज्ञान, मनोभाषाविज्ञान आदि का समावेश है।
पत्रिका के इस अंक में ऐसे ही भाषा के सैद्धांतिक तथा अनुप्रयुक्त पक्ष से संबंधित विषयों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जिनमें प्रख्यात भाषावैज्ञानिक नोम चॉम्स्की के जीवन परिचय पर प्रकाश डाला गया है। नोम चॉम्स्की ऐसे चिन्तक हैं जिन्होने भाषा-विज्ञान को ज्ञानवृत्त के केन्द्र बिन्दु के रूप में प्रतिस्थापित किया । इससे भाषिक चिन्तन को नई स्फुर्ति तथा प्रेरणा प्राप्त हुई । सामान्यत: इस विचार को बल मिला कि मानव और पशु प्रज्ञा अथवा विचार के कारण नहीं अपितु भाषिक क्षमता के कारण भिन्न होता है।
आज विश्व में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां अनुवाद की आवश्यकता न हो अनुवाद के द्वारा हम केवल दूसरे देश के सहित्य से ही परिचित नहीं होते बल्कि विभिन्न तरह की प्रशासनिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, धार्मिक आदि जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है। इस संन्दर्भ में यहाँ भाषा-विज्ञान तथा अनुवाद के महत्व को स्पष्ट किया गया है।
मशीनी अनुवाद के सामने कई समस्याएँ थीं परन्तु उस क्षेत्र में जो प्रयास किये गये उसमें सफल प्रयास 'स्पीच-टू-टेक्स्ट ट्रान्सलेशन सिस्टम' है जो भारत समेत पाँच देशों के भाषा वैज्ञानिको ने तैयार किया है, इसमें अंग्रेजी भाषा में बोला गया वाक्य तत्काल हिन्दी में अनुवादित होता है। एक तरह से देखा जाए तो मशीनी अनुवाद का विकास है। हमने इससे सन्दर्भित लेख को भी इस अंक में शामिल किया है।
भूमंडलीकरण के युग में भाषा पर सूचना प्रौद्योगिकी तथा वैश्वीकरण के प्रभाव से भाषा में नये-नये शब्दों का निर्माण हुआ है। भाषा की द्वंद्वात्मक स्थिति को देखने का प्रयास इस अंक में हमने किया है।
मैं पत्रिका के इस अंक के लिए लेख भेजने वाले सभी विद्वत्जनों की आभारी हूँ।
हर्षा
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