26 नवंबर 2009

भाषा-प्रौद्योगिकी की अवधारणा तथा उद्भव

शिल्पा
एम.ए.-हिन्दी (भाषा-प्रौद्योगिकी)
सामुहिक रूप से रहने की प्रवृत्ति तथा भाषा का विकास ये दो ऐसे कारण हैं, जिन्होनें मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करते हुए एक सामाजिक तथा संस्कृतियुक्त प्राणी बना दिया। भाषा के कारण ही मनुष्य में सोचने तथा विचार करने की शक्ति आई और धीरे-धीरे ज्ञान की शाखाओं का विस्तार हुआ। मनुष्य किसी भी वस्तु के संबंध में व्यवस्थित वैज्ञानिक अध्ययन करता आ रहा है।
मानव द्वारा किये गये अविष्कारों तथा खोजों में आग, विद्युत ऐसे हैं, जिनका उपयोग न करने पर वह अब भी आदिमानव की श्रेणी में चला जाएगा। विद्युत के अविष्कार के साथ ही प्रौद्योगिकी को एक नई दिशा मिली क्योंकि प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक अध्ययन सिध्दांतो के क्षेत्र में अनुप्रयोग है। भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाली ज्ञान की शाखा भाषा-विज्ञान है। कम्प्यूटर में भाषा के अनुप्रयोग के लिए भाषाविज्ञान के सिध्दांतों की आवश्यकता पड़ी। इस प्रक्रिया को व्यापक पैमाने पर सम्पन्न करने वाली ज्ञान की शाखा को भाषा प्रौद्योगिकी कहा जाता है।
अवधारणा- भाषा प्रौद्योगिकी भाषा और प्रौद्योगिकी का सम्मिलित रूप नही है, बल्कि यह तो भाषा-विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स) के सिद्धांतों का प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुप्रयोग है। यह भाषा की व्यवस्था में निहित नियमों तथा उसकी संरचना का गहन विश्लेषण करता है। भाषा में प्रयुक्त वाक्यों आदि के घटकों के विश्लेषण स्वनिम, रूपिम, शब्द, उपवाक्य, आदि रूप में होते हैं। नये वाक्यों की रचना संभव होती है।
इन नियमों तथा सिध्दांतो का प्रयोग प्रौद्योगिकी के साधनों, संगणक, मोबाईल, तथा रोबोट आदि में करने के लिए जिस ज्ञान के शाखा की आवश्यकता पड़ी उसे हम ’भाषा प्रौद्योगिकी’ कहते हैं। इसमें अभिकलनात्मक भाषाविज्ञान, कृत्रिम बुद्धि, अर्थ विज्ञान, गणित, तर्कशास्त्र, दर्शन आदि अन्य क्षेत्र भी सहायता करते हैं।

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