26 नवंबर 2009

हिन्दी भाषा का तकनीकी व्याकरण

गोबिन्द प्रसाद
पी-एच.डी. हिन्दी (भाषा-प्रौद्योगिकी)

विश्‍व की प्रत्येक भाषा में लेखन के स्तर पर सम्बन्धित भाषा के व्याकरणिक नियमों का अनुसरण करना पड़ा है, क्योंकि किसी भी भाषा का व्याकरण मुख्यत: ऐसे नियमों के योग से बना होता है जो उस भाषा का संस्कार एवं परिष्‍कार कर उसे उसकी स्वाभाविक प्रकृति के अनुरुप बनाते हैं। विभिन्न व्याकरणिक तत्व ही भाषा की शुध्‍दता-अशुध्दता का द्योतन करते हैं और भाषिक अस्तित्व को कायम रखते हैं।
आज जब की भाषा सामान्य और तकनीकी जैसी कोटियों में विभाजित होने लगी है जाहिर है दोनों प्रकार की भाषाओं के लिए व्याकरणिक भेद भी होता होगा यह भेद क्या है ? वास्तव में तकनीकी भाषा का व्याकरण सामान्य भाषा के व्याकरण से भिन्न कोई चीज है और यदि है तो उसका औचित्य क्या है? और उसकी आवश्‍यकता क्यों है? वर्तमान सन्दर्भ में भाषा का वर्गीकरण निम्नांकित प्रकार से किया जा सकता है-

भाषा

१. सामान्य भाषा
क) मातृभाषा (घर परिवाऱ्में)
ख) बोलचाल की सम्पर्क भाषा (सामाजिक व्‍यवहार में)
२. तकनीकी भाषा
क) साहित्यिक भाषा - साहित्य में प्रयुक्त शास्त्रीय भाषा, दार्शनिक भाषा सभी
साहित्यों के साहित्य अध्ययन हेतु

ख)साहित्येत्तर भाषा-

मानविकी भाषा - इतिहास,राजनीतिक गणित अर्थशास्त्र
व्यावसायिक भाषा - अभियांत्रिक, प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा में उच्चशिक्षा

विज्ञान की भाषा - प्राकृतिक विज्ञानों जैसे-भौतिकी, रसायन उच्चशिक्षा



उपर्युक्त विभाजन के आधार पर भाषा की व्यापकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि 'तकनीकी भाषा' नामक शब्द खण्ड एक ऐसा विशिष्‍ट प्रयुक्त क्षेत्र है जिसमें भाषिक अध्ययन की गहन आवश्‍यकता है। प्राय: सभी भाषाओं में इसें अत्यंत एवं महत्वपूर्ण एवं विशेष प्रयुक्ति क्षेत्र माना गया है। पारिभाषिक शब्‍दों की भी अधिकता होती है।
जब हिन्दी भाषा के तकनीकी व्याकरण का सवाल उठता है तो भाषा संरचना के उन केन्द्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्‍यकता होती है जहाँ 'तकनीकीपन' की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। तकनीकी लेखन में इसकी अनिवार्य आवश्‍यकता होती है, क्योंकि भाषा की प्रकृति को कायम रखते हुए रुढ़ीबध्द शब्दों की सहायता से कथ्य की शुध्दता और प्रासंगिकता प्राप्त की जाती है। अत: भाषा तकनीकी का अलग व्याकरण का औचित्य सिध्द होता है, किन्तु यह भी उल्लेखनीय है कि तकनीकी भाषा का व्याकरण किसी भी सामान्य भाषा के व्याकरण से अलग नहीं हो सकता है। वह उसी का एक अंग हो सकता है और उसी के सामान्य नियमों से परिचालित होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि भाषा की तकनीक में सामान्य भाषा के कुछ शब्द और रुपों का प्रयोग प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है। प्रसिध्द भाषाशास्त्री प्रो. सुरजभान सिंह भी इसी मत का समर्थन करते हैं। वे लिखते हैं कि ...... यह प्रवृत्ति इतनी प्रबल होती है कि स्थिर तथा रुढ़ हो जाती है। रुढ़ीकरण का यह गुण ही तकनीकी भाषा व्यवस्था का एक भेदक लक्षण हैं । इन रुढीतत्वों और रुपों का विश्‍लेषण और नियमन ही तकनीकी भाषा के व्याकरण की विषयवस्तु हैं। हिन्दी भाषा की तकनीकी शब्दावली निर्माण हेतु गठित शब्दावली आयोग ने शब्द-निर्माण के जिन सर्वसामान्य नियमों और सिध्दांतों का निर्माण किया है । वे भाषा तकनीक में व्याकरणिक व्यवस्था को द्योतन करते हैं। हिन्दी में तकनीकी लेखन विकास और प्रयोग की बाधाओं में एक बाधा संप्रेषण के रुप में भी विद्यमान है। जिसमें यह होता है कि हिन्दी लेखन कला इतनी क्लिष्‍ट होती है कि वह पाठक के समझ में नहीं आती चाहे वह संबन्धित विषय का जानकार हो अथवा नहीं। इसके मुल में भी हमें तकनीकी हिन्दी व्याकरण की समस्या परिलक्षित होती है । क्योंकि किसी निश्चित व्याकरणिक व्यवस्था के अभाव में हिन्दी भाषा में तकनीकी लेखन के स्तर पर स्वेच्छैचारिता देखने को मिलती है । लिंग, वचन, कारक, वर्तनी और शब्द चयन तथा निर्माण स्तर के आधार पर प्रान्तीयता की स्पष्‍ट झलक दिखती है। इतना ही नहीं शब्दावली निमार्ण के सिध्दातों का मनमाने ढंग से उपयोग भी और जटिल बना देता है।
आधुनिक हिन्दी भाषा का तकनीकी विकास स्वाभाविक रुप में न हो कर नियोजित रुप में हुआ है। इसके अधिकांश नवनिर्मित शब्द मौलिक ज्ञान और चिन्तन से सीधे न जुड़कर एक मध्यस्थ भाषा अंग्रेजी के माध्यम से जुड़ा है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव तकनीकी भाषा की शाब्दिक तथा व्याकरणिक संरचना पर पड़ा है । हिन्दी भाषा का तकनीकी व्याकरण संरचना और शैली का एवं दुसरा महत्वपूर्ण प्रभाव अनुवाद की भाषा का है। क्योंकि हिन्दी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तकनीकी भाषा शैली और अभिव्यक्ति का प्रयोग सर्वप्रथम भाषा चिन्तकों के स्तर पर नहीं अपितु अनुवादकों के स्तर पर हुआ। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि हिन्दी की अधिकांश वैज्ञानिक तथा तकनीकी पुस्तकों में जो भाषा रुप और शैली अभिव्यक्त और विकसित हुई है उसमें जहाँ एक ओर अंग्रेजी संरचना की छाप है वहीं दुसरी ओर अनुवादकों और लेखकों की सामर्थ्य की सीमाएँ भी दिखाई देती हैं ।
निष्‍कर्षत: यह कहा जा सकता है सामान्य हिन्दी की भाँति तकनीकी हिन्दी के समुचित व्याकरण का विकास होना आवश्‍यक है। जिसमें वाक्य संरचना, उपसर्ग, प्रत्यय लगाकर शब्दनिर्माण तथा अन्य व्याकरणिक कोटियों से संबंन्धित कारकीय संबंध का बोध हो सके और अभिव्यक्ति के स्तर पर एकरुपता लाई जा सके। इससे हिन्दी भाषा में तकनीकी शब्दों के प्रयोग का मार्ग प्राप्त होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. "भाषा की शुध्‍दता-अशुध्दता का द्योतन"

    ऐसी ग़लती आपके ब्लॉग पर बर्दाश्त नहीं होती। शुद्धता में आधा द आता है ना कि आधा ध।

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  2. भाषा प्रौद्योगिकी की बात तो कर रहे हैं, लेकिन शायद हिंदी में सही ढंग से टाइप करना भी नहीं जानते हैं।

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