गिरीशचंद्र पाण्डेय
देवनागरी लिपि में लिखी गयी हिन्दी को राजभाषा हिन्दी के रूप में माना गया है। देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। कोई भी लिपि वैज्ञानिक लिपि तब कही जाती है जब उसमें प्रत्येक सार्थक ध्वनि के लिए कोई न कोई लिपि चिन्ह हो। देवनागरी में लगभग हर सार्थक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह है। अत: हम कह सकते हैं कि देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। इस तथ्य को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि हिन्दी कम्प्यूटर के लिए और कम्प्यूटर हिन्दी के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। हिन्दी के ही सन्दर्भ में कहें तो देवनागरी लिपि की कुछ और खास बातें हैं जो इस प्रकार हैं-
1. लिपि चिन्हों के नाम ध्वनि के अनुरूप:- देवनागरी की सबसे अधिक महत्वपूर्ण शक्ति यह है कि जो लिपि चिन्ह जिस ध्वनि का द्योतक है उसका नाम भी वही है। जैसे आ, ओ, क, ब, थ आदि। इस प्रकार लिपि चिन्हों की ध्वनि शब्दों में प्रयुक्त होने पर भी वही रहती है। दुनिया की अन्य किसी भी लिपि में इतना सामर्थ्य नहीं है।
2. एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह:- (अधिक नहीं) श्रेष्ठ लिपि में यह गुण होना आवश्यक है। यदि एक ध्वनि के लिए एक से अधिक लिपि चिन्ह होंगे तो उस लिपि के प्रयोक्ता के सामने एक बड़ी कठिनाई यह आयेगी कि वह किस चिन्ह का प्रयोग कहाँ करें। कुछ अपवादों को छोड़ कर देवनागरी में एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह है। जबकि अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है। उदा. के लिए C से स और क दोनों का उच्चारण किया जाता है। इसी तरह क के लिए K व C दोनो का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए City, cut, Kamala, coock आदि।
3. लिपि चिन्हो की पर्याप्तता :- विश्व की अधिकांश लिपियों में चिन्ह प्रर्याप्त नहीं हैं। जैसे-अंग्रेजी में 40 से अधिक ध्वनियों के लिए 26, लिपि चिन्हों से काम चलाया जाता है। जैसे त, थ, द, ध आदि के लिए अलग-अलग लिपि-चिह्न नहीं है, जबकि देवनागरी लिपि में इस दॄष्टि से कोई कमीं नहीं है।
हिन्दी में कम्प्यूटर का प्रयोग :-
कम्प्यूटर में नागरी उपयोग का श्रेय इलेक्ट्रॉनिक आयोग, नई दिल्ली के डॉ.ओम विकास को है। डॉ. वागीश शुक्ल ने अपनी किताब ''छदं-छदं पर कुमकुम'' को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय विद्यालय के प्रकाशन के रूप में प्रकाशित किया है।
इस पुस्तक के प्रकाशन में डोनाल्ड नुथ द्वारा अविस्कारित ''टेक टाईप सेटिंग सिस्टम'' और लेसली लैम्पोर्ट (Leslie Lanport) के स् Latex Marco System का प्रयोग किया है। साथ ही सयुक्ताक्षरों के लिए देवनाग पैकेज (जोकि वेलथुइस द्वारा बनाया गया है) का उपयोग किया है।
अन्य बहुत सारे हिन्दी के साफ्टवेयर हैं, जो आजकल बाजार में भरे पड़े है। जैसे- प्रकाशक, श्रीलिपि, आईलिपि, जिस्ट, मात्रा, अंकुर, आकृति, सुलिपि, अक्षर फार विन्डोज, मायाफोनटिक टुल, चित्रलेखा, अनुवाद, आओ हिन्दी पढ़े, गुरू और आंग्लभारती आदि
राजभाषा हिन्दी में कम्प्यूटर की उपयोगिता :-
1. मानकीकरण में मद्द मिलेगी:- कम्प्यूटर के प्रयोग से हिन्दी के मानकीकरण में सहायता मिलेगी। उदा. के लिए पुराने हिन्दी के टाइपराइटरों में चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) की जगह बिन्दु (अनुस्वार) से ही काम चलाया जाता था। कम्प्यूटर के आ जाने से इस समस्या का समाधान हो गया है।
2. टाइपराइटर पर 92 अक्षर से ज्यादा सम्मिलत करना सम्भव नहीं है।
3. हिन्दी के प्रचार प्रसार में:- मशीन ट्रान्सलेशन एवं इलेम्ट्रानिक हिन्दी शब्द कोश के माध्यम से अहिन्दी भाषियों को भी हिन्दी आसानी से सिखाया जा सकता है।
4. दुर्लभ ग्रथों को सुरक्षित रखने में:- कम्प्यूटर के माध्यम से हम दुर्लभ ग्रंथों को स्कैन करके सॉफ्ट कॉपी बनाकर सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रख सकते हैं।
देवनागरी लिपि में लिखी गयी हिन्दी को राजभाषा हिन्दी के रूप में माना गया है। देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। कोई भी लिपि वैज्ञानिक लिपि तब कही जाती है जब उसमें प्रत्येक सार्थक ध्वनि के लिए कोई न कोई लिपि चिन्ह हो। देवनागरी में लगभग हर सार्थक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह है। अत: हम कह सकते हैं कि देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। इस तथ्य को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि हिन्दी कम्प्यूटर के लिए और कम्प्यूटर हिन्दी के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। हिन्दी के ही सन्दर्भ में कहें तो देवनागरी लिपि की कुछ और खास बातें हैं जो इस प्रकार हैं-
1. लिपि चिन्हों के नाम ध्वनि के अनुरूप:- देवनागरी की सबसे अधिक महत्वपूर्ण शक्ति यह है कि जो लिपि चिन्ह जिस ध्वनि का द्योतक है उसका नाम भी वही है। जैसे आ, ओ, क, ब, थ आदि। इस प्रकार लिपि चिन्हों की ध्वनि शब्दों में प्रयुक्त होने पर भी वही रहती है। दुनिया की अन्य किसी भी लिपि में इतना सामर्थ्य नहीं है।
2. एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह:- (अधिक नहीं) श्रेष्ठ लिपि में यह गुण होना आवश्यक है। यदि एक ध्वनि के लिए एक से अधिक लिपि चिन्ह होंगे तो उस लिपि के प्रयोक्ता के सामने एक बड़ी कठिनाई यह आयेगी कि वह किस चिन्ह का प्रयोग कहाँ करें। कुछ अपवादों को छोड़ कर देवनागरी में एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिन्ह है। जबकि अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है। उदा. के लिए C से स और क दोनों का उच्चारण किया जाता है। इसी तरह क के लिए K व C दोनो का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए City, cut, Kamala, coock आदि।
3. लिपि चिन्हो की पर्याप्तता :- विश्व की अधिकांश लिपियों में चिन्ह प्रर्याप्त नहीं हैं। जैसे-अंग्रेजी में 40 से अधिक ध्वनियों के लिए 26, लिपि चिन्हों से काम चलाया जाता है। जैसे त, थ, द, ध आदि के लिए अलग-अलग लिपि-चिह्न नहीं है, जबकि देवनागरी लिपि में इस दॄष्टि से कोई कमीं नहीं है।
हिन्दी में कम्प्यूटर का प्रयोग :-
कम्प्यूटर में नागरी उपयोग का श्रेय इलेक्ट्रॉनिक आयोग, नई दिल्ली के डॉ.ओम विकास को है। डॉ. वागीश शुक्ल ने अपनी किताब ''छदं-छदं पर कुमकुम'' को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय विद्यालय के प्रकाशन के रूप में प्रकाशित किया है।
इस पुस्तक के प्रकाशन में डोनाल्ड नुथ द्वारा अविस्कारित ''टेक टाईप सेटिंग सिस्टम'' और लेसली लैम्पोर्ट (Leslie Lanport) के स् Latex Marco System का प्रयोग किया है। साथ ही सयुक्ताक्षरों के लिए देवनाग पैकेज (जोकि वेलथुइस द्वारा बनाया गया है) का उपयोग किया है।
अन्य बहुत सारे हिन्दी के साफ्टवेयर हैं, जो आजकल बाजार में भरे पड़े है। जैसे- प्रकाशक, श्रीलिपि, आईलिपि, जिस्ट, मात्रा, अंकुर, आकृति, सुलिपि, अक्षर फार विन्डोज, मायाफोनटिक टुल, चित्रलेखा, अनुवाद, आओ हिन्दी पढ़े, गुरू और आंग्लभारती आदि
राजभाषा हिन्दी में कम्प्यूटर की उपयोगिता :-
1. मानकीकरण में मद्द मिलेगी:- कम्प्यूटर के प्रयोग से हिन्दी के मानकीकरण में सहायता मिलेगी। उदा. के लिए पुराने हिन्दी के टाइपराइटरों में चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) की जगह बिन्दु (अनुस्वार) से ही काम चलाया जाता था। कम्प्यूटर के आ जाने से इस समस्या का समाधान हो गया है।
2. टाइपराइटर पर 92 अक्षर से ज्यादा सम्मिलत करना सम्भव नहीं है।
3. हिन्दी के प्रचार प्रसार में:- मशीन ट्रान्सलेशन एवं इलेम्ट्रानिक हिन्दी शब्द कोश के माध्यम से अहिन्दी भाषियों को भी हिन्दी आसानी से सिखाया जा सकता है।
4. दुर्लभ ग्रथों को सुरक्षित रखने में:- कम्प्यूटर के माध्यम से हम दुर्लभ ग्रंथों को स्कैन करके सॉफ्ट कॉपी बनाकर सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रख सकते हैं।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) में लैबोरेटरी इन इन्फार्मेटिक्स फार द लिबरल आर्ट्स के प्रभारी हैं।)
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