प्रतिभा पायें
शब्दसंजाल किसी लेक्सिम की प्रकृति और सही आशय प्रस्तुत करता है, जो उसके व्यवहार के आधार पर निर्धारित की जाती है। अंग्रेजी की एक वृहत परियोजना के अन्तर्गत शब्दसंजाल, प्रिंसटन विश्वविद्यालय में 80 के दशक में विकसित किया गया। यह जि.मिलर और सी.फेलबोम के प्रयास से विकसित हुआ।
वर्तमान समय में भाषाओं के बीच रही दूरियों को समाप्त करने के लिए कई प्रकार की कोशिश की जा रही है। उन्हीं कोशिशों के परिणाम स्वरुप, अपनी अभिरुचि के अनुरुप दो भारतीय भाषाएँ हिंदी और असमिया के शाब्दिक असमानताओं को सुलझाने के लिए एवं अनुवाद से लेकर विभिन्न भाषिक समस्याओं के समाधान हेतु मैंने इस लघु शोध विषय का चयन किया है।
इसमें हिंदी एवं असमिया भाषा की भाषायी समानता एवं असमानता को विवेचित किया गया है। व्याकरणिक कोटियाँ, शब्द भेदों की अध्ययन-प्रविधि स्पष्ट की गई है। दोनों भाषाओं की समानता एवं असमानता को भी विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। यह प्रतिपादित करता है कि हिंदी एवं असमिया दोनों ही आर्य परिवार की भाषाएँ हैं। दोनों भाषाओं की संरचना में समानता है। वाक्य व्यवस्था, प्रोक्ति व्यवस्था, शब्द भेद, व्याकरणिक कोटियाँ, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति, वाच्य इन सभी में समानता पाई जाती है। दूसरी ओर दोनों के लिंग एवं कारक चिन्हों में भी असमानता पाई जाती है।
कोशनिर्माण के विभिन्न घटकों एवं मापदंडों से संबंधित परिभाषा, विकास, उपयोगिता निर्माण-प्रक्रिया, प्रकार आदि के बारे में विस्तृत विवेचना कि गई है।
शब्दकोश में अर्थ, व्याकरणिक कोटि आदि के साथ शब्दों को इकट्ठा किया गया है जो उसकी उपयोगिता को निरुपित करता है, जिसमें शब्द, रुप, उच्चारण, व्याकरण, निर्देश, व्युत्पत्ति, व्याख्या, पर्याय, लिंग-निर्णय, चित्र और शब्दप्रयोग आदि का संक्षिप्त विवरण रहता है। भारत मनीषियों ने वैदिक काल से ही कोशविज्ञान में अपनी रूचि दिखाई है। पर यूरोप में 1000 ई0 के बाद ही कोशविज्ञान से संबंधित कार्य आरंभ हुआ। कोशविज्ञान अनेक प्रकार के होते हैं जो अलग-अलग कार्यो के लिए उपयोगी होते हैं।
डाटाबेस संरचना एवं ज्ञान प्रबंधन से संबंधित डाटा, सूचना, संचार-प्रौद्योगिकी, उपयोग, निर्माण, प्रक्रिया, कार्पस, प्राकृतिक भाषा संसाधन, ज्ञान प्रबंधन आदि पहलू पर विस्तृत विवेचना की गई है। डाटाबेस संरचना एवं ज्ञान प्रबंधन के तहत वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी के समय उपयोगी संगणकीय कार्य प्रक्रिया के अर्न्तगत डाटाबेस की व्यापक उपयोगिता एवं अनुप्रयोग पक्ष को प्रतिपादित करते हुए डाटाबेस सूचनाओं का एक ऐसा व्यवस्थित संग्रह किया गया है, जिसमें हम किसी भी सूचना को सहज ही प्राप्त कर सकते है।
"शब्द संजाल:अनुप्रयोगिक पक्ष" से संबंधित शब्द संजाल, एल्गोरिदम, फलोचार्ट, प्रोग्रामिंग को विश्लेषित करते हुए एक ऐसे मॉड्यूल निर्मित किए गए हैं जो दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचनात्मकता एवं पर्याय को स्पष्ट करता है।
अतः कह सकते हैं कि मेरे इस लघु शोध प्रबंध के सैद्धांतिक एवं अनुप्रायोगिक पक्ष का समेकित सार दोनों प्रकार के उपयोगी अध्ययनों को पारस्परलंबित करने वाला हैं। साथ ही यह सैद्धांतिक पक्ष की शक्ति क्षमता को अनुप्रायोगिक पक्ष की व्यावहारिकता को सार्थकता से उजागर करने वाला है।
वर्तमान समय में भाषाओं के बीच रही दूरियों को समाप्त करने के लिए कई प्रकार की कोशिश की जा रही है। उन्हीं कोशिशों के परिणाम स्वरुप, अपनी अभिरुचि के अनुरुप दो भारतीय भाषाएँ हिंदी और असमिया के शाब्दिक असमानताओं को सुलझाने के लिए एवं अनुवाद से लेकर विभिन्न भाषिक समस्याओं के समाधान हेतु मैंने इस लघु शोध विषय का चयन किया है।
इसमें हिंदी एवं असमिया भाषा की भाषायी समानता एवं असमानता को विवेचित किया गया है। व्याकरणिक कोटियाँ, शब्द भेदों की अध्ययन-प्रविधि स्पष्ट की गई है। दोनों भाषाओं की समानता एवं असमानता को भी विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है। यह प्रतिपादित करता है कि हिंदी एवं असमिया दोनों ही आर्य परिवार की भाषाएँ हैं। दोनों भाषाओं की संरचना में समानता है। वाक्य व्यवस्था, प्रोक्ति व्यवस्था, शब्द भेद, व्याकरणिक कोटियाँ, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति, वाच्य इन सभी में समानता पाई जाती है। दूसरी ओर दोनों के लिंग एवं कारक चिन्हों में भी असमानता पाई जाती है।
कोशनिर्माण के विभिन्न घटकों एवं मापदंडों से संबंधित परिभाषा, विकास, उपयोगिता निर्माण-प्रक्रिया, प्रकार आदि के बारे में विस्तृत विवेचना कि गई है।
शब्दकोश में अर्थ, व्याकरणिक कोटि आदि के साथ शब्दों को इकट्ठा किया गया है जो उसकी उपयोगिता को निरुपित करता है, जिसमें शब्द, रुप, उच्चारण, व्याकरण, निर्देश, व्युत्पत्ति, व्याख्या, पर्याय, लिंग-निर्णय, चित्र और शब्दप्रयोग आदि का संक्षिप्त विवरण रहता है। भारत मनीषियों ने वैदिक काल से ही कोशविज्ञान में अपनी रूचि दिखाई है। पर यूरोप में 1000 ई0 के बाद ही कोशविज्ञान से संबंधित कार्य आरंभ हुआ। कोशविज्ञान अनेक प्रकार के होते हैं जो अलग-अलग कार्यो के लिए उपयोगी होते हैं।
डाटाबेस संरचना एवं ज्ञान प्रबंधन से संबंधित डाटा, सूचना, संचार-प्रौद्योगिकी, उपयोग, निर्माण, प्रक्रिया, कार्पस, प्राकृतिक भाषा संसाधन, ज्ञान प्रबंधन आदि पहलू पर विस्तृत विवेचना की गई है। डाटाबेस संरचना एवं ज्ञान प्रबंधन के तहत वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी के समय उपयोगी संगणकीय कार्य प्रक्रिया के अर्न्तगत डाटाबेस की व्यापक उपयोगिता एवं अनुप्रयोग पक्ष को प्रतिपादित करते हुए डाटाबेस सूचनाओं का एक ऐसा व्यवस्थित संग्रह किया गया है, जिसमें हम किसी भी सूचना को सहज ही प्राप्त कर सकते है।
"शब्द संजाल:अनुप्रयोगिक पक्ष" से संबंधित शब्द संजाल, एल्गोरिदम, फलोचार्ट, प्रोग्रामिंग को विश्लेषित करते हुए एक ऐसे मॉड्यूल निर्मित किए गए हैं जो दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचनात्मकता एवं पर्याय को स्पष्ट करता है।
अतः कह सकते हैं कि मेरे इस लघु शोध प्रबंध के सैद्धांतिक एवं अनुप्रायोगिक पक्ष का समेकित सार दोनों प्रकार के उपयोगी अध्ययनों को पारस्परलंबित करने वाला हैं। साथ ही यह सैद्धांतिक पक्ष की शक्ति क्षमता को अनुप्रायोगिक पक्ष की व्यावहारिकता को सार्थकता से उजागर करने वाला है।
(लेखिका महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के इनफॉर्मेटिक्स एँड लैंगुएज़ इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी अध्ययन केंद्र में शोधरत हैं।)
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