शशिभूषण सिंह
काव्यभाषा को विशिष्टत्व प्रदान करने में जिन कारकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, समांतरता उन्हीं में से एक है। समांतरता शैलीविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण संघटक है। जब दो या दो से अधिक छवियाँ , शब्द ,रूप , वाक्य और प्रोक्ति कविता में पुनरूक्त होते हैं, तब समांतरताएँ होती हैं। किंतु ध्यातव्य है कि सभी पुनरूक्तियाँ , समांतरताएँ नहीं बनती , बल्कि जब ये सार्थक और साभिप्राय होती हैं तभी ये समांतरता बनती हैं अर्थातजब पुनरूक्तियाँ सोद्देश्य और सनियम की जाती हैं, तभी उन पुनरूक्तियों को समांतरता में परिगणित किया जा सकता है।
समकालीन हिंदी काव्यभाषा की गरमाहट उसके जुझारूपन में दिखाई देती है। आम आदमी की पीड़ा, उसके संघर्ष, लोककथा, लोकगीत और साधारणजनों के मुहावरों और ठहाकों ने जितना धार समकालीन काव्यभाषा को दिया है, उतना ही समांतरता ने भी। निराला की कविता ‘जूही की कली’ में समांतरता की उपस्थिति द्रष्टव्य है-
उपर्युक्त पंक्तियों में ‘ आई याद ’ क्रियापद की साभिप्राय आवृति पाठक या श्रोता के मन पर विशेष प्रभाव छोड़ती है। निराला के लगभग आधी सदी बाद अरूण कमल की पंक्तियां हैं-
शब्द और रूप स्तर पर समांतरता प्रायः सभी समकालीन कवियो में देखी जा सकती है। किंतु वाक्य और प्रोक्ति स्तर की समांतरता का चमत्कार जो अरूण कमल की काव्यभाषा में है, वह अन्य समकालीन कवियों की काव्यभाषा में दुर्लभ है। वाक्य - स्तरीय समांतरता का एक उदाहरण उनकी ‘होटल’ कविता में दिखाई देती है -
यहाँ ‘साइत’ और ‘वक्त’ , ‘समय’ के ही दो पर्याय हैं। बड़ी ही कुशलता से कवि ने यहाँ शब्दों की जगह अर्थ की बारंबारता को अध्यारोपित किया है तथा लयात्मकता की क्षति से काव्यभाषा का बचाव भी।
किंतु समतामूलक समांतरता से कहीं ज्यादा आकर्षण (अरूण कमल के यहाँ) विरोधी समांतरता में दिखाई पड़ता है, बल्कि अरूण कमल तो विरोधी समांतरता के कवि ही माने जाते हैं- खासकर प्रोक्ति - स्तरीय विरोधी समांतरता के -
“कितने ही घरों के पुल टूटे
इस पुल को बनाते हुए”
(‘महात्मा गांधी सेतु और मजदूर’ कविता से)
“माताएँ मरे बच्चों को जन्म दे रही हैं
और हिजड़े चैराहों पर थपड़ी बजाते
सोहर गा रहे हैं”
(‘उल्टा जमाना’ कविता से)विरोधी स्थितियों की भयावहता को चित्रित करने में अरूण कमल का जोड़ नहीं । शैली वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह चित्रण काव्यभाषा में विरोधी समांतरता से ही संभव है। तभी तो अनुप्रयुक्त भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का शैली -विज्ञान समांतरता को काव्य- भाषा के वैशिष्ट्य के उत्कर्षकों में गिनता है।
बात जहाँ तक व्यंजना में कहनी हो वहाँ अरूण कमल की कविता में प्रोक्ति - स्तरीय विरोधी समांतरता दिखाई देती है, किंतु जहाँ बात अविधा में कहनी हो वहाँ इनकी कविता प्रायः अर्थ-स्तरीय विरोधी समांतरता को बुनती हैं। जी.डब्ल्यू एलन इसे ही ^Antithetical Parallism’ कहते हैं। अरूण कमल की कविता में समांतरता का ये दृष्टांत प्रचुर मात्रा में विद्यमान है ”“-
समकालीन हिंदी काव्यभाषा की गरमाहट उसके जुझारूपन में दिखाई देती है। आम आदमी की पीड़ा, उसके संघर्ष, लोककथा, लोकगीत और साधारणजनों के मुहावरों और ठहाकों ने जितना धार समकालीन काव्यभाषा को दिया है, उतना ही समांतरता ने भी। निराला की कविता ‘जूही की कली’ में समांतरता की उपस्थिति द्रष्टव्य है-
“आई याद बिछुड़न से मिलन की वह बात ,
आई याद चांदनी से धुली हुई आधी रात
आई याद कांता की कंपित कमनीय गात”
आई याद चांदनी से धुली हुई आधी रात
आई याद कांता की कंपित कमनीय गात”
उपर्युक्त पंक्तियों में ‘ आई याद ’ क्रियापद की साभिप्राय आवृति पाठक या श्रोता के मन पर विशेष प्रभाव छोड़ती है। निराला के लगभग आधी सदी बाद अरूण कमल की पंक्तियां हैं-
“अभी भी जिंदगी ढूंढती है धुरी
अभी भी जिंदगी ढूंढती है मुक्ति
कहाँ अवकाश कहाँ समाप्ति”
(मुक्ति कविता से)
उपर्युक्त पंक्तियों को पढ़कर सहज ही समझा जा सकता है कि कविता में जो बेचैनी दिखाई देती है ,‘अभी’ की आवृति उसे थोड़ा और सघन बना देती है। समांतरता का ऐसा चमत्कारी दिग्दर्शन अरूण कमल की कविताओं में आद्योपांत दिखाई देता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अरूण कमल की कविता का नाभि केन्द्र है- समांतरता। यहाँ समांतरता के दोनों रूपों (समतामूलक और विरोधी) का दर्शन होता है।अभी भी जिंदगी ढूंढती है मुक्ति
कहाँ अवकाश कहाँ समाप्ति”
(मुक्ति कविता से)
शब्द और रूप स्तर पर समांतरता प्रायः सभी समकालीन कवियो में देखी जा सकती है। किंतु वाक्य और प्रोक्ति स्तर की समांतरता का चमत्कार जो अरूण कमल की काव्यभाषा में है, वह अन्य समकालीन कवियों की काव्यभाषा में दुर्लभ है। वाक्य - स्तरीय समांतरता का एक उदाहरण उनकी ‘होटल’ कविता में दिखाई देती है -
ऐसी ही थाली,
ऐसी ही कटोरी,
ऐसा ही गिलास,
ऐसी ही रोटी,
ऐसा ही पानी
यहाँ वाक्य-संरचना की आवृति में समांतरता है। वाक्य का आवर्तित संरचनात्मक ढांचा द्रष्टव्य है-ऐसी ही कटोरी,
ऐसा ही गिलास,
ऐसी ही रोटी,
ऐसा ही पानी
सार्वनामिक विशेषण + बलात्मक अव्यय + संज्ञा
ऐसी ही थाली
ऐसी ही कटोरी
ऐसा ही गिलास
ऐसी ही रोटी
इसी प्रकार अरूण कमल की कविताओं में प्रोक्ति - स्तरीय समांतरता भी प्रचुर दिखाई देती है -ऐसी ही थाली
ऐसी ही कटोरी
ऐसा ही गिलास
ऐसी ही रोटी
“बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हाथ
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दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हाथ”
(‘खुशबू’ कविता से)
अरूण कमल की कविताओं में(समतामूलक) अर्थ-स्तरीय समांतरता अपेक्षाकृत कम दिखाई पड़ती है किंतु वे कम आकर्षक नहीं हैं -टोले के अंदर
खुशबू रचते हाथ
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दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हाथ”
(‘खुशबू’ कविता से)
“सही साइत पर बोला गया शब्द
सही वक्त पर कंधे पर रखा गया हाथ
सही समय पर किसी मोड़ पर इंतजार”
(‘राख’ कविता से)
सही वक्त पर कंधे पर रखा गया हाथ
सही समय पर किसी मोड़ पर इंतजार”
(‘राख’ कविता से)
यहाँ ‘साइत’ और ‘वक्त’ , ‘समय’ के ही दो पर्याय हैं। बड़ी ही कुशलता से कवि ने यहाँ शब्दों की जगह अर्थ की बारंबारता को अध्यारोपित किया है तथा लयात्मकता की क्षति से काव्यभाषा का बचाव भी।
किंतु समतामूलक समांतरता से कहीं ज्यादा आकर्षण (अरूण कमल के यहाँ) विरोधी समांतरता में दिखाई पड़ता है, बल्कि अरूण कमल तो विरोधी समांतरता के कवि ही माने जाते हैं- खासकर प्रोक्ति - स्तरीय विरोधी समांतरता के -
“कितने ही घरों के पुल टूटे
इस पुल को बनाते हुए”
(‘महात्मा गांधी सेतु और मजदूर’ कविता से)
“माताएँ मरे बच्चों को जन्म दे रही हैं
और हिजड़े चैराहों पर थपड़ी बजाते
सोहर गा रहे हैं”
(‘उल्टा जमाना’ कविता से)
बात जहाँ तक व्यंजना में कहनी हो वहाँ अरूण कमल की कविता में प्रोक्ति - स्तरीय विरोधी समांतरता दिखाई देती है, किंतु जहाँ बात अविधा में कहनी हो वहाँ इनकी कविता प्रायः अर्थ-स्तरीय विरोधी समांतरता को बुनती हैं। जी.डब्ल्यू एलन इसे ही ^Antithetical Parallism’ कहते हैं। अरूण कमल की कविता में समांतरता का ये दृष्टांत प्रचुर मात्रा में विद्यमान है ”“-
“इस नए बसते इलाके में
जहाँ रोज बन रहें हैं नए-नए मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशाने”
(‘नए इलाके में’ कविता से)
“दुनिया में इतना दुःख है इतना ज्वर
सुख के लिए चाहिए बस दो रोटी और एक घर
दिन इतना छोटा रातें इतनी लम्बी हिंसक पशुओं भरी”
(‘आत्मकथ्य’ कविता से)
स्पष्ट है कि समांतरता का अनुप्रयोग न केवल काव्यभाषा को सुशोभित करता है, बल्कि उसकी अपील को भी द्विगुणित कर देता है। काव्यभाषा के इस आधुनिक संप्रत्यय की मदद से काव्य-वस्तु का पुनरीक्षण किंचित अभिनव तरीके से किया जा सकता है।जहाँ रोज बन रहें हैं नए-नए मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशाने”
(‘नए इलाके में’ कविता से)
“दुनिया में इतना दुःख है इतना ज्वर
सुख के लिए चाहिए बस दो रोटी और एक घर
दिन इतना छोटा रातें इतनी लम्बी हिंसक पशुओं भरी”
(‘आत्मकथ्य’ कविता से)
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के साहित्य विभाग में शोधरत हैं।)
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