-प्रवीण कुमार पाण्डेय
भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग
भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग
उच्चारण की दृष्टि से भाषा की लघुत्तम इकाई ध्वनि है। ध्वनियों के मेल से शब्द बनते हैं, लेकिन शब्द बनाने के लिऐ इन्हें सार्थक या अर्थ बोधक की क्षमता से युक्त होना चाहिए। ध्वनि सार्थक ही हो यह जरूरी नहीं है, जैसे- अ,क,प,त इत्यादि। ये ध्वनियां हैं, लेकिन सार्थक नहीं है। किन्तु कल, कब, चल आदि ये शब्द हैं क्योंकि इनमें सार्थकता है अर्थात् अर्थ देने की क्षमता है और ऐसे शब्द भाषा की सार्थक इकाई हैं। व्यवहारिक दृष्टि से भी अर्थ के स्तर पर भाषा की लघुत्तम सार्थक इकाई को भी शब्द कहते हैं, जो कोश मे मिलता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सार्थक स्वतंत्र ध्वनि समूहों को शब्द कहा जाता है। किन्तु सार्थक होने पर भी शब्द को वाक्य में ज्यों का त्यों प्रयोग नहीं कर सकते हैं। प्रयोग को उपयुक्त बनाने के लिये शब्दों में कुछ व्याकरणिक परिवर्तन करना पड़ता है जैसे- शब्दों में विभक्ति चिह्न (ने,को,से इत्यादि) लगाने पड़ते हैं। विभक्ति का अर्थ है- विभाजन अर्थात् जिससे शब्द के अर्थ का विभाजन हो सके और यह मालूम हो जाए कि शब्द से कौन-सा अर्थ निकल रहा है जैसे- वह घर आना। इससे यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि वक्ता क्या कहना चाहता है ? अपने घर में या किसी और के घर में ? वह कौन सा लिंग हैं ? और यह किस वचन में है ? इस प्रकार शब्द से परिचित होने पर भी हमें उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया । इसका कारण यह है कि शब्द में विभक्ति चिह्न नहीं लगा है। लेकिन इसमें विभक्ति चिह्न लग जाने पर अर्थ स्पष्ट हो जाएगा। जैसे- वह घर से आया/आयी / वह घर में आया/आयी ।
इस प्रकार इन तीन शब्द से कई अर्थ बन सकते हैं और जब शब्द में विभक्ति चिह्न लगाते हैं, तो वह वाक्य में प्रयुक्त होने योग्य हो जाता है। उसे ही ’पद’ कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि शब्द दो प्रकार के होते हैं- विभक्ति चिह्न रहित और विभक्ति चिह्न युक्त । विभक्ति चिह्न रहित शब्द ‘शब्द’ कहलाते हैं तथा विभक्ति चिन्ह युक्त शब्द ‘पद’ होते हैं अर्थात् बिना पद के वाक्य नहीं बन सकते। संस्कृत व्याकरण में भी कहा गया है कि ‘अपदं न प्रयुंजीत’। अर्थात् पद बनाये बिना शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यहाँ ‘शब्द का प्रयोग’ का मतलब वाक्य में प्रयोग से है। अष्टाध्यायी में पाणिनी ने पद को ‘सुप्ति‘ङन्तं पदं’ कहा है अर्थात् सुप और तिङ प्रत्ययों से युक्त शब्द को पद कहते हैं। इसमें सुप प्रत्यय नाम के साथ लगता है और तिङ आख्यात के साथ लगता है। नाम संज्ञा, सर्वनाम, तथा विशेषण को कहते हैं और आख्यात क्रिया को कहते हैं।
इस प्रकार हम देखतें है कि शब्द और पद को अलग करने वाला तत्व विभक्ति चिह्न ही है जो वाक्य में अहम भूमिका निभाता है।
इस प्रकार इन तीन शब्द से कई अर्थ बन सकते हैं और जब शब्द में विभक्ति चिह्न लगाते हैं, तो वह वाक्य में प्रयुक्त होने योग्य हो जाता है। उसे ही ’पद’ कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि शब्द दो प्रकार के होते हैं- विभक्ति चिह्न रहित और विभक्ति चिह्न युक्त । विभक्ति चिह्न रहित शब्द ‘शब्द’ कहलाते हैं तथा विभक्ति चिन्ह युक्त शब्द ‘पद’ होते हैं अर्थात् बिना पद के वाक्य नहीं बन सकते। संस्कृत व्याकरण में भी कहा गया है कि ‘अपदं न प्रयुंजीत’। अर्थात् पद बनाये बिना शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यहाँ ‘शब्द का प्रयोग’ का मतलब वाक्य में प्रयोग से है। अष्टाध्यायी में पाणिनी ने पद को ‘सुप्ति‘ङन्तं पदं’ कहा है अर्थात् सुप और तिङ प्रत्ययों से युक्त शब्द को पद कहते हैं। इसमें सुप प्रत्यय नाम के साथ लगता है और तिङ आख्यात के साथ लगता है। नाम संज्ञा, सर्वनाम, तथा विशेषण को कहते हैं और आख्यात क्रिया को कहते हैं।
इस प्रकार हम देखतें है कि शब्द और पद को अलग करने वाला तत्व विभक्ति चिह्न ही है जो वाक्य में अहम भूमिका निभाता है।
good
जवाब देंहटाएं'प्रयास' के भाषावैज्ञानिक लेख ज्ञानवर्धक हैं। हिन्दी विकिपिडिया पर भी भाषावैज्ञानिक विषयों के लेख लिखे जाने की महती आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएं2morrow is my hindi exam and this post is very helpful to me.Thanks.....
जवाब देंहटाएं2morrow is my hindi exam and this is very helpful to me.Thanks...
जवाब देंहटाएं