20 अगस्त 2009

मणिपुरी भाषा की वर्तमान स्थिति

थोकचोम कमला देवी
भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग



जिसको हम वैश्वीकरण के नाम से जानते हैं आज उसके कारण समूचा संसार एक बदली हुई प्रक्रिया के रूप में दिखाई दे रहा है। इसमें हर एक चीज मशीनीकरण की ओर अग्रेषित होती जा रही है। वर्तमान समय में कई भाषाएँ वैश्वीकरण के कारण लुप्त होने की स्थिति में हैं।
भारत के उत्तर-पूर्व में सात राज्यों- आसाम, मणिपुर, नागालेंड, अरूणाचलप्रदेश, मिजोराम, त्रिपुरा, मेघालय बहनों की तरह और सिक्किम भाई के रूप में बसे हैं। इन राज्यों में मूल रूप से तीन भाषा-परिवार मिलते हैं-भारत ईरानी, साइनो तिब्बती तथा आस्ट्रिक। मणिपुर की भाषा (मीतैलोन) साइनो तिब्बती परिवार के उप-कुल तिब्बती बर्मी के अंतर्गत आती है। मणिपुरी की लिपि को मीतै मयेक (मीतै लिपि) कहा जाता है। अब तक उन्नतीस भाषाएँ तथा बोलियाँ और अलग अलग उन्नतीस मातृभाषाएँ उपलब्ध है। मणिपुरी भाषा ही इस राज्य की संपर्क भाषा है। विश्व में इस भाषा को बोलनेवालों की संख्या 3.3 मिलियन है और इनमें से 1.6 मिलियन मणिपुरी तथा मणिपुरी मुस्लिम है। संपर्क भाषा के रूप में 700000 मणिपुर के नागा और कुकी जनजातियाँ बोलते है। बाकी के 500,000 भारत के अन्य राज्यों-असाम, त्रिपुरा और बंगाल में बोली जाती है। 400,000 म्यान्मार के मंडले, यांगुन तथा कलेम्यो में और 100,000 बंगलादेश के ढाका और सिल्हेत में बोली जाती है। उत्तर पूर्वी भाषाओं में से कई भाषाएँ लुप्त होने की स्थिति में है और इनको बचाना भाषवैज्ञानिकों का एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मेघालय की राजधानी शीलांग में स्थित नोर्थ ईस्ट हील युनिवर्सिटि के भाषाविज्ञान विभाग और सी.आई.आई.एल. मैसूर द्वारा 18-21मार्च 2009 को पहला अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को आयोजित किया गया है। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य था “World languages & North east languages : convergence,enrichment or death ?” । न सिर्फ पूर्वोत्तर राज्यों की भाषाओं को बल्कि विश्व की और कई भाषाएँ भी लुप्त हो रही हैं। यूनेस्को के अनुसार विश्व भर में 750 भाषाएँ लुप्त हो चुकी है और 6000 भाषाएँ खतरे में हैं। इसलिए भाषा विस्थापन के साथ साथ अनुरक्षण की भी आवश्यकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें