20 अगस्त 2009

खेल-कूद की भाषा और अनुवाद

ओमप्रकाश प्रजापति
अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ



खेलों के प्रति रूचि प्रारम्भ से ही रही है। यह रूचि बालक में ही हो, ऐसी बात नहीं है। हर आयु के पुरुष-स्त्री खेल के प्रति हमेशा आकृष्ट हुए हैं। महाभारत में आचार्य द्रोण द्वारा पांडु और कुरू पुत्रों के खेल-खेल में दी गई अनेक शस्त्र तथा मल विधाओं रथ दौड़ आदि प्रतियोगिताओं के वर्णन को खेल-समाचारों का आदि रूप कहें तो अतिशयोक्ति नहीं है।
पाश्चात्य-साहित्य में भी खेल-रिपोर्ताज के अनुसार के उदाहरण मिलते हैं। सुप्रसिध्द यूनानी लेखक होमर (850 ई.पू.) ने इडियट की 23वीं पुस्तक में औडसियस और एजाक्स के मल्ल युद्ध का वर्णन रोमांचक शैली में प्रस्तुत किया है। वर्जिल (70ई.पू.) ने एनियट में भी मल युध्द का रोमांचक तथा सुन्दर वर्णन किया है। यूनान के ओलम्पिक खेलों के प्रारम्भ से वहाँ खेलों की व्यवस्थित परम्परा चली आ रही है। रोम सभ्यता के उत्कर्ष से रथ और घुड़दौड़ की प्रतियोगिता को विशेष प्रोत्साहन मिला।
राजनीति के पश्चात खेल-जगत ही ऐसा क्षेत्र है जिससे सम्बद्ध समाचारों में पाठकों की विशेष रूचि होती है। युवा व विद्यार्थी समुदाय खेल-समाचारों में बेहद दिलचस्पी रखते हैं। विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में खेल सम्बन्धी कार्यक्रम प्रतिदिन आयोजित किए जाते हैं। खेल संवाददाता के लिए ये सभी केन्द्र खेल-समाचार संकलन के स्त्रोत हैं। इनमें नगर स्तरीय, राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय स्तर की अनेक खेल-प्रतियोगिताएँ शामिल हैं।
एक समय था कि खेल कूद को समाज हेय दृष्टि से देखता था। इतना ही नहीं बड़े बूढ़े कहा करते थे।
पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब।
खेलोगे कूदोगे होंगे खराब।
किन्तु अब वह स्थिति नहीं है। नवाब और मंत्रियों के बेटे (नवाब पटौदी, कीर्ति आजाद) भी अपने को आगे बढ़ाने के लिए खेलों की शरण लेते हैं समाचारों में चाहे वे पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में हो या रेडियो पर या टेलीवीजन पर खेलकूद को सुनिश्चित स्थान दिया जाता है। अब तो लगता है कि आधुनिक युग को शायद सूत्र ही बन गया है। खेल में हिट, तो सब जगह फिट।
खेलों के प्रकार-
खेल मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं। एक 'इनडोर' तथा दूसरा 'आउटडोर' इनडोर छत के नीचे कमरे में बिना किसी मैदान के खेले जाते हैं। शतरंज कैरमबोर्ड, चौपड़, बिलियार्ड आदि इसी श्रेणी में आते हैं। फूटबाल, क्रिकेट, बालीबाल, तैराकी, पर्वतारोहरण आदि 'आउटडोर' खेल मैदान में खेले जाने वाले कहलाते हैं।
खेल समाचारों की भाषा, शब्दावली व शीर्षक-
खेल समाचारों की भाषा चलती हुई होनी चाहिए उसमें गति हो जिससे पाठक के मन पर अनुकूल प्रभाव पड़े। भाषा-जन-साधारण की हो, चालू शब्दों और मुहावरों से भरपूर तथा भारीपन से कोसों दूर हो। शब्दों को आत्मसात करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि उसका प्रयोग हिन्दी-व्याकरण के अनुरूप किया जाए चाहे शब्द किसी भाषा का क्यों न हो? उदाहरणार्थ- क्रिकेट में प्रयुक्त अंग्रेजी 'रन' शब्द है। इस शब्द को बड़ी आसानी से पचाया जा सकता है इसका अनुवाद कई लोग दौड़ करते है। वास्तव में 'रन' का जो अर्थ है। उसे दौड़ों में नहीं बॉटा जा सकता है। हमें अपनी भाषा में अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों को लेने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए 'रन' शब्द इतना प्रचलित हो चुका है कि इसके अनुवाद की आवश्यकता नहीं है।
शब्दों के अनुवाद करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पाठक खेल समाचार पढ़ते समय किसी 'शब्दकोश' को लेकर नहीं बैठता यदि किसी नए शब्द का प्रयोग किया जाए तो कुछ समय तक अवश्य ही उसके मूल शब्द को कोष्ठक में दे देना चाहिए। अनुवादित शब्द भी ऐसे होने चाहिए जो सही और उपयुक्त हो।
खेल समाचार लेखन के दो रूप होते हैं एक तो यह कि आप डेस्क पर बैठे-बैठे समाचार एजेंसी की रपट का अनुवाद कर डालें। दूसरा यह कि स्वयं मैदान में जाकर स्वतंत्र रूप से रपट तैयार करें। अधिकांश हिन्दी पत्रों में समाचार एजेंसियों की रपट का अनुवाद ही होता है।
'शीर्षक' का सिद्धांत खेल समाचारों पर लागू होता है जो अन्य समाचारों पर खेल समाचारों में मुख्यत: परिणाम का महत्त्व होता है। पाठक भी पहले उसी को जानना चाहता है। अत: शीर्षक इस प्रकार होने चाहिए जो समाचार के सार को विस्स्थापित कर दे।
शार्टकार्नर- अनुवादक को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि किसी पारिभाषिक अर्थ से हिन्दी शब्द प्रचलित हो तो वही दे जैसे- 'गोलकीपर' की तुलना 'गोली’ और 'सिक्सर' की तुलना 'छक्का' के लिए यदि दो शब्द प्रचलित हो तो अधिक प्रचलित और मानक शब्द प्रयोग करें अपेक्षाकृत कम प्रचलित और अमानक का नहीं। किसी नए स्वनिर्मित ऐसे हिन्दी शब्द का प्रयोग कभी न करें तो पाठक के लिए अवरोधगम्य हैं।
विशिष्ट प्रयोग- बहुत से लोग समझते हैं कि खेलकूद की भाषा होती है, किन्तु वास्तविकता यह नहीं है। यह भाषा भी सर्जनात्मक निजात्मक तथा अलंकारिक होती है। अनुवादक ऐसी भाषा में अनुवाद करके समाचार को अधिक जीवंत और प्रभावी बना सकता है। नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान तथा जनसत्ता खेल-कूद के पन्ने की भाषा की तुलना से तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एक ही बात को आकर्षक और प्रभावी ढंग से भी कहा जा सकता है और सपाट तथा नीरस ढंग से भी। अनुवादक को जितना हो सके सर्जनात्मक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

2 टिप्‍पणियां:

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