01 जनवरी 2010

महाभाष्य, प्रथम अध्याय में निरुपित शब्द स्वरूप

कुमारी अर्चना देवी
एम.फिल., भाषा-विद्यापीठ
म.गा.अ.हि.वि.,वर्धा
महर्षि पतंजलि कृत ’महाभाष्य’ 84 आह्निकों (अध्यायों) में विभक्त व्याकरण महाभाष्य है। प्रथम अध्याय ’पस्पशा’ आह्निक के नाम से जाना जाता है जिसमें शब्द स्वरूप का निरूपण किया गया है।
’अथ शब्दानुशासनम' से शास्त्र का प्रारंभ करते हुए पतंजलि मुनि ने शब्दों के दो प्रकार बताए हैं – लौकिक एवं वैदिक। लौकिक शब्द जैसे- गौ, अश्व, पुरुष, शकुनि अर्थात् पशु, पक्षी एवं मनुष्य आदि को लिया है तथा वैदिक शब्द जैसे- अग्निमीळे पुरोहितम् आदि वैदिक मन्त्रों को लिया है।
उदाहरणार्थ ’गौ’ शब्द का वर्णन करते हुए भाष्यकार कहते हैं कि जब ’गौ’ बोला जाता है तो वास्तव में उसमें शब्द क्या होता है ? स्पष्टीकरण में वे कहते हैं कि ’गौ’ के शारीरिक अवयव खुर, सींग को शब्द नहीं कहा जाता है, इसे द्रव्य कहते हैं। इसकी शारिरिक क्रियाओं को भी शब्द नहीं कहते हैं, इसे क्रिया कहते हैं। इसके रंग (शुक्ल, नील) को शब्द नहीं कहते, यह तो गुण है। यदि दार्शनिक दृष्टिकोण से यह कहा जाय कि जो भिन्न-भिन्न पदार्थों में एकरूप है और जो उसके नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता, सब में साधारण,अनुगत है वह शब्द है तो ऎसा नहीं है, इसे जाति कहते हैं।
वास्तविक रूप में, जो उच्चरित ध्वनियों से अभिव्यक्त होकर खुर, सींग वाले गौ का बोध करता है, वह शब्द है। अर्थात् लोक-व्यवहार में जिस ध्वनि से अर्थ का बोध होता है वह ’शब्द’ कहलाता है। सार्थक ध्वनि शब्द है।
इसी शब्दार्थ बोधन को भर्तृहरि ने ’स्फोट’ कहा। शब्द वह है, जो उच्चरित ध्वनियों से अभिव्यक्त होता है और अभिव्यक्त होने पर उस-उस अर्थ का बोध कराता है।

1 टिप्पणी:

  1. अर्चना जी महाभाष्य में 84 नहीं 85 आह्निक हैं इन्फॉर्मेशन को दुरुस्त करो |

    जवाब देंहटाएं