12 अप्रैल 2010

रुपसाघक बनाम व्युत्पादक रुपिम

-मधुप्रिया

एम। ए। भाषा प्रौद्योगिकी


भाषा की लधुतम अर्थवान इकाई रुपिम कहलाता है| रूपसाधक रुपिम वह है, जिसमें एक के बाद दूसरा रुपिम नहीं जोड़ जा सकता, जैसे- लड़की-लड़कीयॉ, किताब-किताबें, दुकान-दुकानें आदि। ऑ, एँ. ऐं के बाद दूसरा और रुपिम नहीं जोड़ा जा सकता है, जबकि व्युत्पादक रुपिम में एक से अघिक रुपिम जोड़ा जा सकता है, जैसे- राष्ट्र-राष्ट्रीयता, भारत-भारतीयता रुपसाघक रुपिम व्याकरणीक रुपों की रचता करता है अर्थात एकवचन से बहुवचन में, जबकि व्युत्पादक रुपिम व्याकरणीक कोटी को बदलता है | जैसे -सुंदर-सुंदरता। इसमें विशेषण से संज्ञा में परिवर्तन होता है। रुपसाघक रुपिम व्युत्पादक रुपिम के बाद लगता है । रुपसाघक रुपिम लगने से रुपिम के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता हैजैसे -रात-रातें, लिखा-लिखा ।

इसमें अर्थ एक ही है जबकि व्युत्पादक रुपिम में अर्थ में परिवर्तन आ जाता है ।


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