12 अप्रैल 2010

हिंदी-मराठी मशीनी अनुवाद प्रणाली में रूपवैज्ञानिक विश्‍लेषण की भूमिका

किसी भी भाषा को समझने के लिए हमें उस भाषा के व्याकरण को समझना जरूरी है। रूप-विज्ञान ऐसी ही एक भाषा विज्ञान की शाखा है. जिसमें, हम विभिन्न भाषिक प्रयोग एवं रचना में आने वाले शब्दों का अध्ययन रूप रचना के अंर्तगत करते हैं. उसी तरह प्राकृतिक भाषाई संसाधन में रूप विज्ञान का अध्ययन किया जाता हैं. इसमें शब्दों को संज्ञात्मक (NP) और क्रियात्मक (VP) रूप में वर्गिकृत करते हैं. इन कोटियों का हम निष्पादन और व्युत्पादन के वर्ग में विश्लेषण करते है. इस प्रबंध में हिंदी मराठी की क्रियाओं का रूप विश्लेषण किया गया है. यह विश्लेषण पक्ष, वाच्य, वृत्य के व्याकरणिक परिपेक्ष्य स्पष्ट करता है जो अपने आप लिंग, वचन और पुरूष की व्याकरणिक कोटियों को भी स्पष्ट करने में मदद करता है यह विश्लेषण निष्पादक कोटि का है. हिंदी भाषा में जो पक्ष वाच्य और वृत्ति की जो संकल्पनाएं है उसी को आधार बना कर हिंदी-मराठी क्रियाओं का किया गया है जबकि हिंदी और मराठी की पक्ष वाच्य और वृत्ति की संकल्पनाएं कुछ भिन्न हैं जैसे हिदी वृत्ति मराठी में काल का अर्थ, हिंदी वाच्य मराठी प्रयोग और पक्ष जो मराठी संकल्पनाओं में अभिप्रेत नहीं है.

इन व्याकरणिक कोटियों का जब विश्लेषण किया गया तब ज्यादातर क्रियाएं आसानी से हिंदी से मराठी में अनुवादित हुई. लेकिन कुछ ऐसी कोटियाँ हैं जिनका हम आसानी से अनुवाद नहीं कर सकते जैसे हिंदी में वृत्ति की निश्चित संभाव्य क्रिया

१ -जा रहा होगा २ -जाता होगा का मराठी में इस प्रकार अनुवाद होगा तब इसका अर्थ यह है कि जब ’रहा होगा’ और -ता होगा. प्रत्यय होंगे तो मराठी में -त- नार यह प्रत्यय ही लगेंगे इस समस्या को समझने के लिए हमें स्वनिमिक व्यवस्था PHENOLOGY के स्ट्रेस और PITCH संदर्भ की सहायता लेनी होगी

उसी प्रकार 1. लिखता चला आ रहा है 2. वह लिखता चलेगा इन दोनों वाक्यों के समय को दर्शाने वाला अर्थ मराठी में क्रिया के वर्ग में ना रहकर क्रिया विश्लेषण के वर्ग को दर्शाता है. इसका अर्थ यह है कि मराठी में इन दोनों क्रियाओं को हम स्पष्ट नहीं करते है अर्थात उसका शब्दभेद (PART OF SPEECH) वर्ग बदलता है। जाने को है’ और जाने वाला है इन दोनों क्रियाओं को मराठी में समान रूप अर्थात एक ही प्रत्यय जानार आहे’ में प्रयोग करते है.

यह हिंदी मराठी के क्रियाओं का विश्लेषण और समानताएं और असमानताओं को स्पष्ट करता है जिससे सम्बंधित अनुवाद की समस्या होती है चाहे मानव अनुवाद द्वारा हो या मशीनी अनुवाद के द्वारा हो। अगर एक शब्द का भावार्थ हम पूरे पाठ में नहीं दे पाते तो पाठ का स्वरूप बदलता है इसलिए मशीनी अनुवाद में सभी भारतीय भाषाओं के लिए ’रूपिम विश्लेषण’ यह पहला कदम होना चाहिए जो शब्द के अर्थ और उसकी व्याकरणिक कोटियों को व्यक्त करने में सहायक हो सकेगा।

हिंदी मराठी मशीनी अनुवाद पक्ष, वाच्य और वृत्ति के परिप्रेक्ष्य में क्रियाओं का विश्लेशण एक महत्त्वपूर्ण पहलू को स्पष्ट कर रहा है जो यह भी सूचित करता है कि अगर यह क्रियाओ का विश्लेषण मराठी हिंदी मशीनी अनुवाद को आधार बनाकर मराठी के पक्ष, वाच्य, वृत्ति की संकल्पनाएँ स्पष्ट करके एक अलग संभावना को व्यक्त करेगी।

(शोध-छात्रा अर्चना थूल द्वारा एम.फिल. हिंदी (भाषा-प्रौद्योगिकी) में

प्रस्तुत शोध-प्रबंध का सार-लेख)


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