-योगेश
एम। ए., भाषा-प्रोद्योगिकी विभाग
एम। ए., भाषा-प्रोद्योगिकी विभाग
फर्दिनांद द सस्यूर भाषाविज्ञान के आधुनिक जनक के नाम से जाने जाते है। इनकी पुस्तक “The Course in General Linguistics” इनके छात्रो द्वारा उनकी मृत्यु के पश्चात् प्रकाशित की गई।
F. D. Sassure जब भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन करने लगे तो उन्हे पता चला कि भाषाविज्ञान में भाषाविज्ञान का अध्ययन कालक्रमिक (Diachronic) ऐतिहासिक दृश्टिकोण से किया जा रहा है। उन भाषावैज्ञानिकों का कहना था कि भाषाविज्ञान कालक्रमिक अध्ययन है तथा इतिहास का मतलब है भाषा मे होने वाला परिवर्तन, जिससे भाषा का विकास होता है। जबकि F. D. Sassure का कहना है कि भाषाविज्ञान का अध्ययन एककालिक (समकालिक) और कालक्रमिक दृष्टिकोण पर आधारित है। जब तक हम भाषा का एककालिक अध्ययन करते तब तक भाषा का कालक्रमिक अध्ययन नहीं किया जा सकता। हमें भाषाविज्ञान के अध्ययन कि दृष्टि से वर्तमान मे प्रचलित भाषा है उसका समग्र विश्लेषण वस्तुनिष्ठ रूप से करना होगा। भाषा का एककालिक अध्ययन करने के पश्चात्य ही भाषा का कालक्रमिक (Diachronic) अध्ययन प्राप्त किया जा सकता है।
एककालिक का अर्थ है कि वर्तमान मे उस भाषा की व्यवस्था क्या है? उसकी भाषिक संरचना क्या है? इसका अध्ययन एककालिक अध्ययन प्रणाली मे होता है जबकि कालक्रमिक अध्ययन प्रणाली से भाषा के परिवर्तन का अध्ययन वस्तुनिष्ठ रूप से किया जाता है।
इन कारणों से समझा जा सकता है कि भाषा का आधारभूत और व्यावहारिक अध्ययन एककालिक होता है।
भाषा की संरचना पर F. D. Sassure ने लांग (langue) और पारोल (parole) दो प्रकार की संकल्पना प्रस्तुत की। हम उसे भाषा-व्यवस्था (langue) और भाषा-व्यवहार (parole) कहते हैं। किसी भाषा के बोलने वाले समाज के मस्तिष्क मे समान रूप स्थित व्यवस्था भाषा-व्यवस्था है। उदाहरणस्वरूप तमिल, मराठी, हिन्दी समाज।
भाषा-व्यवस्था के आधार पर किसी व्यक्ति का वैयक्तिक व्यवहार भाषा-व्यवहार कहलाता है।
इस अंतर को निम्नलिखित रुप से समझ सकते हैं:
भाषा व्यवस्था भाषा व्यवहार
1 भाषा-व्यवस्था सामाजिक है जबकि भाषा-व्यवहार वैयक्तिक है
2 समाज मे भाषा-व्यवस्था समरूप होती है जबकि भाषा-व्यवहार विषमरूप होता है
3 भाषा-व्यवस्था मानसिक होती है जबकि भाषा-व्यवहार मनोशारीरिक होता है
4 भाषा-व्यवस्था मूर्त है जबकि भाषा-व्यवहार अमूर्त है
5 भाषा-व्यवस्था रूढ़िबद्ध होती है जबकि भाषा-व्यवहार परिवर्तनशील है
6 भाषा-व्यवस्था संस्थागत है जबकि भाषा-व्यवहार व्यक्तिगत है
इस आधार पर कहा जा सकता है कि भाषा-व्यवहार और भाषा-व्यवस्था दोनों एक-दूसरे पर आधारित है। दोनों एक दूसरे के कारक तत्त्व हैं।
F. D. Sassure जब भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन करने लगे तो उन्हे पता चला कि भाषाविज्ञान में भाषाविज्ञान का अध्ययन कालक्रमिक (Diachronic) ऐतिहासिक दृश्टिकोण से किया जा रहा है। उन भाषावैज्ञानिकों का कहना था कि भाषाविज्ञान कालक्रमिक अध्ययन है तथा इतिहास का मतलब है भाषा मे होने वाला परिवर्तन, जिससे भाषा का विकास होता है। जबकि F. D. Sassure का कहना है कि भाषाविज्ञान का अध्ययन एककालिक (समकालिक) और कालक्रमिक दृष्टिकोण पर आधारित है। जब तक हम भाषा का एककालिक अध्ययन करते तब तक भाषा का कालक्रमिक अध्ययन नहीं किया जा सकता। हमें भाषाविज्ञान के अध्ययन कि दृष्टि से वर्तमान मे प्रचलित भाषा है उसका समग्र विश्लेषण वस्तुनिष्ठ रूप से करना होगा। भाषा का एककालिक अध्ययन करने के पश्चात्य ही भाषा का कालक्रमिक (Diachronic) अध्ययन प्राप्त किया जा सकता है।
एककालिक का अर्थ है कि वर्तमान मे उस भाषा की व्यवस्था क्या है? उसकी भाषिक संरचना क्या है? इसका अध्ययन एककालिक अध्ययन प्रणाली मे होता है जबकि कालक्रमिक अध्ययन प्रणाली से भाषा के परिवर्तन का अध्ययन वस्तुनिष्ठ रूप से किया जाता है।
इन कारणों से समझा जा सकता है कि भाषा का आधारभूत और व्यावहारिक अध्ययन एककालिक होता है।
भाषा की संरचना पर F. D. Sassure ने लांग (langue) और पारोल (parole) दो प्रकार की संकल्पना प्रस्तुत की। हम उसे भाषा-व्यवस्था (langue) और भाषा-व्यवहार (parole) कहते हैं। किसी भाषा के बोलने वाले समाज के मस्तिष्क मे समान रूप स्थित व्यवस्था भाषा-व्यवस्था है। उदाहरणस्वरूप तमिल, मराठी, हिन्दी समाज।
भाषा-व्यवस्था के आधार पर किसी व्यक्ति का वैयक्तिक व्यवहार भाषा-व्यवहार कहलाता है।
इस अंतर को निम्नलिखित रुप से समझ सकते हैं:
भाषा व्यवस्था भाषा व्यवहार
1 भाषा-व्यवस्था सामाजिक है जबकि भाषा-व्यवहार वैयक्तिक है
2 समाज मे भाषा-व्यवस्था समरूप होती है जबकि भाषा-व्यवहार विषमरूप होता है
3 भाषा-व्यवस्था मानसिक होती है जबकि भाषा-व्यवहार मनोशारीरिक होता है
4 भाषा-व्यवस्था मूर्त है जबकि भाषा-व्यवहार अमूर्त है
5 भाषा-व्यवस्था रूढ़िबद्ध होती है जबकि भाषा-व्यवहार परिवर्तनशील है
6 भाषा-व्यवस्था संस्थागत है जबकि भाषा-व्यवहार व्यक्तिगत है
इस आधार पर कहा जा सकता है कि भाषा-व्यवहार और भाषा-व्यवस्था दोनों एक-दूसरे पर आधारित है। दोनों एक दूसरे के कारक तत्त्व हैं।
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