11 अक्टूबर 2009

प्रौद्योगिकी और प्रयोजनमूलक हिन्दी

-शेख अन्सार
पी-एच. डी., भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग


जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग में लायी जानेवाली भाषा प्रयोजनमूलक होती हे। चूंकि भारत में सबसे अधिक हिन्दी भाषा ही प्रयोग में लायी जाती है, इस कारण वह 'प्रयोजनमूलक हिन्दी' कहलाती है। हिन्दी जहाँ एक ओर आत्मसुख का उपकरण है वहीं दूसरी ओर सामाजिक आवश्यकता और जीवन की उस व्यवस्था से जुड़ी है जो व्यक्ति के साथ रहती है और उसके निमित्त, जो सेवा माध्यम के रूप में प्रयुक्त होती है।
भाषा सामाजिक व्यवहार की वस्तु है। लेकिन समाज के संदर्भ सदैव एक समान नहीं होते। मानसिक, प्रायोजनिक, पारंपारिक तथा अभिव्यक्ति की दृष्टि से समाज में भी परिवर्तन होते हैं। प्रौद्योगिकी अनुसंधान से संबद्ध संस्था का एक अलग समाज है और वितीय संस्थाओं का दूसरा भिन्न समाज। इसी प्रकार प्रशासन, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग का भी अपना भिन्न समाज है। अत: एक वृहत्तर समाज के भीतर भिन्न-भिन्न प्रयोजन होते है जो नए क्षेत्रों की खोज करते हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी का प्रयोग क्षेत्र इतना व्यापक है कि आए दिन हम हिन्दी के नवीन रूपों से परिचित होते हैं। जैसे- साहित्य सर्जन, जीव-विज्ञान, कृषिविज्ञान, विधि, संचार, बैंकिंग एवं बोलचाल के रूपों में।
प्रौद्योगिकी के कारणवश प्रयोजनमूलक हिन्दी के नये क्षेत्रों की भविष्य में बहुत अधिक संभावनाएँ विकसित हो सकती हैं। इसका एक कारण है विश्व बाजार में हिन्दी की बढ़ती माँग और दूसरा प्रौद्योगिकी में हिन्दी भाषा का प्रवेश। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि वैश्वीकरण के युग में आज जहाँ विश्व उदारीकरण की ओर बढ़ रहा है और भारत में एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार होन के कारण सभी लोग अपना उत्पादन बेचने के लिए हिन्दी भाषा सीख रहे हैं। इसलिए भविष्य में बड़ी संख्या में हिन्दी भाषियों का निर्माण होगा। ये तो हुई भविष्य की बात लेकिन आज प्रौद्योगिकी के कारण प्रयोजनमूलक हिन्दी में जो नये आयाम जुड़े हैं। उनमें रोजगार की संभावनाएँ बहुत बढ़ गई है।
अत: कहा जा सकता है कि इसका क्षेत्र असीमित हैं। विश्व के साथ हमारा संबध सुदृढ़ होता जाएगा, उतने ही ज्ञान क्षेत्रों के द्वार भी खुलते जाऐंगे। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार समिति ने इस बारे में ठीक ही कहा था कि “नये क्षेत्रों की आवश्यकता नये प्रयोजन से निर्मित होती है।“ आज रॉबटोलॉजी, फिजीयोथॅरपी और न्युरोफीजिक्स जैसे शब्द भले ही हमसे परे हों किन्तु विश्व में ये शब्द पहचाने जाते है। इन क्षेत्रों के विषयों को अभिव्यक्त करनेवाली पारिभाषिक शब्दावली हिंदी भाषा में उपलब्ध हो जाएगी तब वे हमारे लिए नए नहीं रहेंगे। तात्पर्य इतना है कि कठिन शब्दावली होने के कारण हम उन शब्दों का प्रयोग करने से बचते हैं। किन्तु बार-बार प्रयोग के कारण ही वे शब्द रुढ होकर चलन में आ जाते है। आज हिंन्दी के शब्द विदेशी भाषाओं में तथा विदेशी भाषा के शब्द हिंन्दी में स्थान पा रहे हैं। इससे तय है कि प्रयोजनमूलक हिंन्दी के नए क्षेत्रों का निर्माण होगा तथा इसमें रोजगार भी बहुत बडे पैमाने पर उपलब्ध होगें और इनसे जुडी अनेक प्रयोगार्थ संभावनाएँ भी बनेगी तथा अंतरराष्ट्रीय धरातल पर अपना विशाल जाल बुनेगी ।

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