11 अक्तूबर 2009

भाषा का बदलता स्वरूप

आम्रपाल शेंदरे
एम. ए., कंप्युटेशनल भाषाविज्ञान
विभाग
प्राचीन काल से आज तक जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया वैसे- वैसे भाषा का भी उतरोत्तर विकास होता गया। भाषा के विकास के लिए राजा महाराजाओं ने भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया। विशिष्ट काल में उस काल के राजा ने उस काल की भाषा को राजाश्रय के द्वारा और भी विकसीत करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। जैसे आर्य काल में आर्यो ने संस्कृत भाषा को ज्यादा महत्त्व दिया। उन्होनें संस्कृत में ही साहित्य का निर्माण किया। आर्या के द्वारा लिखे गये ’वेद’ संस्कृत में ही पाये जाते है अर्थात्‍ उस काल में संस्कृत को राजाश्रय मिलने की वजह से संस्कृत भाषा ज्यादा लोकप्रिय हुई। उसके बाद बौद्ध काल में ई. पू. 500 में संस्कृत का महत्त्व कम होकर पाली भाषा का महत्त्व बढ़ने लगा क्योंकि बौद्ध काल में भगवान बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए पाली भाषा का उपयोग किया। साथ ही उस समय पाली भाषा को राजाश्रय भी मिला इसी वजह सें उस समय के ग्रंथ पाली भाषा में लिखे गए और पाली भाषा एक उभरती हुई भाषा के रूप में आई। चूंकि धर्म के प्रभाव के साथ भाषा में भी परिवर्तन आता है। उस काल के बाद मुग़ल काल में उर्दू भाषा का प्रचलन आया।
भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के बाद जो ग्रंथ साहित्य मिलता है वो अरबी, फ़ारसी या उर्दू में है। मतलब मुस्लिम साम्राज्य में भारत में पाली भाषा का महत्त्व उर्दू भाषा ने ले ली। उसके बाद 18 वीं सदी में जब भारत पर अग्रेजों का शासन हुआ तब अग्रेंजी भाषा का प्रचार-प्रसार बड़े जोरों से होने लगा। अंग्रेजों ने अपने शासन काल में अंग्रेजी भाषा को महत्त्व दिया। इसलिए उर्दू का महत्त्व कम होकर भारत में अंग्रेजी का महत्व बढने लगा। अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा को प्रमुखता देकर अंग्रेजी भाषा के विकास में प्रचार-प्रसार का कार्य किया। मतलब प्रत्येक समय में भिन्न भाषा का प्रचार-प्रसार समाज में होता रहा। भारत में जिन राजाओं ने राज किया उनहोंने अपने काल के प्रचलित भाषा को महत्त्व दिया। इस प्रकार विभिन्न कालों में भाषा का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहा।

1 टिप्पणी:

  1. किन्तु वर्तमान में भी संस्कृत भाषा का महत्व कम नही हुआ है। "जयतु संस्कृतम्।"

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